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________________ जयपुर के प्रमुख तेरापंथी श्रावक १६३ का यहां चातुर्मास के लिए पधारना हुआ। लम्बे समय तक सम्भाल न होने पर भी हरचन्दलालजी बहुत दृढ़ रहे । उस चातुर्मास मे उनका पूरा परिवार दृढ़धर्मी हो गया। सं० १८६६ का वह चातुर्मास जनोपकार की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण रहा। अनेक नये परिवारों ने गुरुधारणा की। उसके पश्चात् तो साधु-साध्वियों तथा आचार्यश्री का यहां बार-बार पदार्पण होता रहा। हरचन्दलालजी जवाहरात के काम में बहुत दक्ष थे। उन्होंने अपने व्यापार को इतना बढ़ाया कि यातायात की असुविधा के उस युग में भी कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, हैदराबाद, दिल्ली और आगरा आदि १२ नगरों में अपने नये व्यापार-केन्द्र प्रारम्भ दिये । अपने समय में वे जौहरियों के बादशाह कहे जाते थे। व्यापारिक और धार्मिक-दोनों क्षेत्रों में शिखरस्थ बन जाने वाले विरल व्यक्ति ही देखे जाते हैं। हरचन्दलालजी उन्हीं व्यक्तियों में से एक थे। उनकी उस उन्नति से अनेक लोग प्रसन्न थे तो अनेक ईर्ष्यालु भी। __ अजमेर निवासी एक व्यापारी सेठ ने ईष्यावश एक कुटिल चाल चली। उन्होंने बाजार से उनके नाम की छः लाख रुपयों की हुंडियां एकत्रित कर लीं। वे उन्हें भुगतान के लिए एक साथ जयपुर भेज देना चाहते थे, ताकि समय पर भुगतान न कर पाने पर उनका दिवाला निकल जाए । परन्तु बिल्ली के चाहने पर कब छींके टूटे हैं ? हुंडियों के एक दलाल को उक्त योजना का पता चल गया। उसने तत्काल जयपुर आकर हरचन्दलालजी को चेता दिया कि कल बाजार खुलते ही आपके नाम छः लाख रुपयों की हुंडियां आने वाली हैं। ये समाचार मिले तब तक प्रहर रात्रि व्यतीत हो चुकी थी। बाजार सब बन्द हो चुके थे, अतः इतनी बड़ी रकम एकत्रित करना सहज नहीं था, फिर भी कार्य तो करना ही था। वे उसी समय अपने व्यावसायिक मित्रों से मिले और साढ़े पांच लाख रुपयों की व्यवस्था कर ली। पचास हजार रुपये उस दिन उनकी अपनी दुकान मे पोते बाकी थे। इस प्रकार छः लाख रुपयों से भरे कट्टे जब उनकी हवेली में पहुंच गये तब वे निश्चिन्त होकर सोये। दूसरे दिन बाजार खुलते ही उन सेठजी का आदमी हुंडियां 'देखी' (स्वीकार) करवाने आ पहुंचा। हरचन्दलालजी ने सारी हुंडियां तत्काल 'देखी' कर दी। मध्याह्न होने तक तो उन्होंने भुगतान भी भेज दिया। उन सेठजी के सारे मनसूबे एक साथ ही मिट्टी में मिल गए। हरचन्दलालजी का एक बाल भी बांका नहीं हुआ। उस समय तक जयपुर में व्यापारियों के लिए यह नियम था कि जिस दिन हुंडी पहुंचे उसी दिन देखी कर दें और बारह बजे तक भुगतान भेज दें। हरचन्दलालजी ने सर्राफों की पंचायत बुलाई और उसमें उन सेठजी की नीयत का दिग्दर्शन कराते हुए भुगतान करने के नियम को बदल देने की आवश्यकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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