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________________ १८४ चिन्तन के क्षितिज पर यहां से भोजन मंगवा कर उन्हें पारण करवाया गया। बेले-बेले की तपस्या तो चलती ही थी अतः हर तीसरे दिन बाहर से भोजन मंगाना पड़ता था। उसका भी कोई प्रभाव नहीं हुआ तब सरदारबाई ने केश-लुंचन कर श्वेत वस्त्र पहन लिये और आज्ञापत्र न मिलने तक अन्य प्रकार के वस्त्रों का त्याग कर दिया। उनके इस व्यवहार से जेठ जल-भुन गये । उन्होंने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह बलपूर्वक उनके वे वस्त्र उतरवा दे । परन्तु पत्नी ने वैसा करना उचित नहीं समझा। जेठ ने कहा-"मर भले ही जाओ, परन्तु आज्ञा नहीं मिलेगी।" जेठ के उक्त शब्दों से सरदारबाई ने स्पष्ट समझ लिया कि अब 'करो या मरों' के सिवा कोई मार्ग नहीं है । उन्होंने तब प्राणों की बाजी लगाते हुए घोषित किया कि जब तक दीक्षा की आज्ञा नहीं दी जायेगी तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी। उनकी प्रतिज्ञा ने एक साथ ही सबको हिला दिया। बहादुरचन्दजी भी अन्दर से तो चितित हुए परन्तु बाहर से कठोर बने रहे। ___ अनशन कर देने के पश्चात् सरदारबाई प्राय: अपने कमरे में ही रहने लगीं। उनका अधिकांश समय जप, ध्यान आदि धार्मिक क्रियाओं में व्यतीत होने लगा। निर्जल अनशन के एक-एक कर आठ दिन गुजर गये । तब तक फलौदी के घर-घर में अनशन की बात फैल गयी । बहादुरचन्दजी पर तरह-तरह के दबाव आने लगे तब उन्हें कोई मार्ग निकालने के लिए सोचना पड़ा। कठोरता को वे आजमा चुके थे, अतः इस बार नम्रता से प्रलोभन देकर झुका लेने की बात सोची। वे सरदारबाई के पास आये और बोले-"तुम चाहो तो मेरे दोनों पुत्रों में से किसी एक को गोद ले लो। धन की पांती लेकर पृथक रहना चाहो तो पृथक् रहो और साथ रहना चाहो तो साथ । गरीबों में धन बांटना चाहो तो खूब बांटो, अपने घर में कोई कमी नहीं है। साधु-साध्वियों की सेवा में कहीं जाने की इच्छा हो तो रथ एवं नौकरों आदि की पूरी व्यवस्था कर दी जायेगी। जो भी मन में आये, वह सब करो पर एक ही शर्त है कि दीक्षा की बात छोड़ दो।" सरदार सती को इनमें से कोई भी बात स्वीकार नहीं हुई तब बहादुरचन्दजी निराश होकर वापस चले गये। घोर निर्जल तपस्या के कारण सरदारबाई के मुख से खून गिरने लगा । उससे सभी को घबराहट हुई। जेठ के सिवा घर के शेष सभी सदस्यों की उनके प्रति पूर्ण सहानुभूति थी। अस्सी वर्षीया वृद्ध दादीसास तथा जेठानी आदि ने आज्ञा दे देने के लिए बहादुरचन्दजी पर बहुत दबाव डाला पर उनके तो वही ढाक के तीन पात रहे। अनशन के दस दिन व्यतीत हो गये तब जेठानी ने उनकी सहानुभूति में तब तक अन्न-जल का त्याग कर दिया जब तक कि उनका वह अनशन चले । इसी प्रकार दादीसास ने भी औषधि और जल के सिवा भोजन ग्रहण करने का त्याग कर दिया। घर में तीन व्यक्तियों के आजीवन तपस्या चलने लगी। घर के सभी सदस्यों का सामना करना ढड्ढा जी के लिए कठिन हो गया तब उन्होंने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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