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________________ १७६ चिन्तन के क्षितिज पर बड़ा बनना है या छोटा लगता है आचार्यवर ने हमारे हंसने के उस स्वभाव को बदलने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोग किया। एक दिन दोनों उपपात में बैठे थे तब उन्होंने फरमाया - आओ एक सोरठा याद करो । उन्होंने सिखाया - हंसिये ना हंसियार, हंसिया हलकाई हुवे । हंसिया दोष हजार, गुण जावे गहलो गिणं ॥ इसी प्रकार एक- दूसरे अवसर पर उन्होंने हमें यह श्लोक कंठस्थ कराया— बाल सखित्वमकारण हास्य, स्त्रीषुविवादमसज्जन सेवा । गर्दभयानभसंस्कृतवाणी, षट्सु नरो लघुतामुपयाति ॥ आचार्यश्री ने हमें शिक्षा देते हुए कहा -- " बच्चों के साथ मित्रता, अकारण हास्य, , स्त्रियों के साथ विवाद, दुर्जन की संगति, गधे की सवारी और अशुद्ध वाणीइन छह बातों से मनुष्य छोटा बन जाता है ।" शिक्षा के बीच में ही आचार्यश्री ने हमसे प्रश्न किया- "तुम लोग बड़ा बनना चाहते हो या छोटा !" हम दोनों ने एक साथ उत्तर दिया – 'बड़ा' । आचार्यश्री ने तब हमारी ओर एक विचित्र दृष्टि से देखते हुए कहा - "बड़ा बनना चाहते हो तो इन बातों से बचना चाहिए ।" सहज भाव से दी गई उक्त शिक्षा हमारे अन्तरंग में उतरती गई और हम शीघ्र ही अकारण हास्य के उस स्वभाव से मुक्त हो गये । पारस्परिक स्पर्धा I गहरी मित्रता के साथ-साथ हम दोनों में स्पर्धा भी चलती रहती थी । खड़िया से पट्टी कौन पहले लिखता है, श्लोक कौन शीघ्र याद करता है, आचार्यश्री की सेवा में कौन पहले पहुंचता है, मुनि तुलसी का कथन कौन पहले कार्यान्वित करता है — ये हमारी स्पर्धा के विषय हुआ करते थे । कभी-कभी अन्य विषयों में भी स्पर्धा हो जाया करती थी । सं० १९८६ में एक बार श्री डूंगरगढ़ में कालूगणी की सेवा में मुनि नथमलजी बैठे थे । आचार्यश्री ने अपने ! पुट्ठे' से भर्तृहरि का नीतिशतक निकाल कर उन्हें दिया। उन्होंने आकर मुझे दिखाया तो मैंने भी गुरुदेव से उसकी मांग की। एक बार तो उन्होंने फरमाया कि 'पुट्ठे' में एक ही प्रति थी, वह दे दी गई, अब तुम्हारे लिए कहां से आये ! इस पर भी मैंने अपनी मांग को दुहराया तब मुनि चौथमलजी के 'पुट्ठे' से एक-दूसरी प्रति निकलवाकर उसी समय मुझे दी गई । सं० १९९० में बीदासर में आचार्यश्री का प्रवास था । मैं अकेला आचार्यश्री For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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