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आचार्यश्री तुलसी : कुशल अध्यापक १७१ था, उनमें से एक मैं भी हं। हम छात्रों में उनके प्रति जितना स्नेह था उतना ही भय भी था। वे हमारे लिए जितने कोमल थे, उतने ही कठोर भी। जिस विद्यार्थी में अपने अध्यापक के प्रति भय न होकर कोरा स्नेह ही होता है, वह अनुशासनहीन बन जाता है। इसी तरह जिसमें स्नेह न होकर कोरा भय ही होता है, वह श्रद्धाहीन बन जाता है। सफलता उन दोनों के सम्मिलन में है। हम लोगों में उनके प्रति स्नेह से उद्भूत भय था। हमारे लिए उनकी कमान जैसी तनी हुई वक्रीभूत भौंहों का भय कितना सुरक्षा का हेतु था, यह उन दिनों जितना नहीं समझते थे, उतना आज समझ रहे हैं।
उत्साह-दान विद्यार्थियों का अध्ययन में उत्साह बनाये रखना भी अध्यापक की एक कुशलता होती है। एक शैक्ष के लिए उचित अवसर पर दिया गया उत्साह-दान जीवन-दान के समान ही मूल्यवान् होता है। अपनी अध्यापक अवस्था में आचार्यश्री ने अनेक में उत्साह जागृत किया तथा अनेक के उत्साह को बढ़ाया था। मैं इसके लिए अपनी ही बाल्यावस्था का एक उदाहरण देना चाहूंगा । जब हमने 'अभिधान चिन्तामणि कोश' (नाममाला) कठस्थ करना प्रारम्भ किया, तब कुछ दिन तक दो श्लोक कण्ठस्थ करना भी भारी लगता था। मूल बात यह थी कि संस्कृत के कठिन उच्चारण और नीरस पदों ने हमको उबा दिया था। उन्होंने हमारी अन्यमनस्कता को तत्काल भांप लिया और आगे से प्रतिदिन आध घण्टा हमें अपने साथ उसके श्लोक रटाने लगे, साथ ही अर्थ बताने लगे। उसका प्रभाव यह हुआ कि हमारे लिए कठिन पड़ने वाले उच्चारण सहज हो गये, नीरसता में कमी लगने लगी। थोड़े दिनों पश्चात् हम उसी कोश के छत्तीस-छत्तीस श्लोक कण्ठस्थ करने लग गये। मैं मानता हूं कि यह उनकी कुशलता से ही सम्भव हो सका अन्यथा हम उस अध्ययन को कभी का छोड़ चुके होते।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थियों की दुविधा को समझता है और उसे दूर करने का मार्ग खोजता है वह अवश्य ही अपने शिष्यों की श्रद्धा का पात्र बनता है। उनकी प्रियता के जहां और अनेक कारण थे, वहां यह सबसे अधिक बड़ा कारण था । आज भी उनकी प्रकृति में यह बात देखी जा सकती है। विद्यार्थियों की अध्ययन-गत असुविधाओं को मिटाने में आज भी वे उतना ही रस लेते हैं । इतना अन्तर अवश्य है कि उस समय उनका कार्य-क्षेत्र कुछ छात्रों तक ही सीमित था, पर आज वह समूचे संघ में व्याप्त हो गया है । साध्वी समाज में विद्या-विकास आचार्यश्री ने अपने मुनिकाल में अध्यापन कार्य किया, यह कोई आश्चर्य की बात
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