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१५८ चिन्तन के क्षितिज पर अपने ही विचार को पूर्ण सत्य मानकर अन्य को भी मनवाने का आग्रही बना हुआ है । अपने विरोधी राष्ट्र का मान-मर्दन करने के लिए दूसरे राष्ट्र वहां आतंकवाद को प्रश्रय देकर आतंक फैलाने तथा उसे विघटित करने का प्रयास कर रहे हैं। हीनता ग्रंथि से पीड़ित अनेक आतंकवादी संगठन निरपराध नागरिकों की हत्या कर स्वयं को कृतकृत्य मान रहे हैं। धर्म, भाषा और मतवाद आदि के नाम पर अनेक संगठन पारस्परिक विवाद में खम ठोककर एक-दूसरे को पराजित करने पर तुले हुए हैं। ऐसी स्थिति में भगवान महावीर के ये अहिंसा, मैत्री, समता एवं सहिष्णुता के उपदेश और भी अधिक आवश्यक तथा सामयिक हो गए हैं।
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