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________________ आत्म-जागरण के उपदेष्टा : भगवान् महावीर धुरीण-युग ई० पू० ८०० से ई० पू० २०० वर्ष तक का काल इतिहास का धुरीण युग कहा जाता है । इस युग में संसार के विभिन्न देशों में अनेक ऐसे व्यक्ति उत्पन्न हुए, जिन्होंने अपनी जीवन-पद्धति और विचार पद्धति से जन-जीवन को अतिशय प्रभावित किया। चीन में लाओत्से और कन्फ्युसियस जैसे विचारक, ईरान में जरथुस्त्र जैसे मार्गदर्शक, यूनान में पैथागोरस, सुकरात और प्लेटो जैसे दार्शनिक भारत में उपनिषदों के अनेक ऋषि तथा महावीर और बुद्ध जैसे आध्यात्मिक महापुरुष उसी युग की देन हैं । इससे संसार की विचारधारा में युगान्तरकारी मोड़ आया । निपट भौतिक सुखों की याचना में पगी हुई मनुष्य की चिन्तन-प्रणाली जड़ प्रकृति के अध्ययन से हटकर चैतन्य के अध्ययन की ओर उन्मुख हुई और मनुष्य के लिए बहिरंग से अंतरंग की ओर प्रस्थान करने का मार्ग प्रशस्त हुआ । सर्व त्याग भगवान् महावीर का जन्म इसी युग पूर्वार्ध में ई० पू० ५६६ में हुआ । भारत का वातावरण उस समय पशु बलि और याज्ञिक क्रिया काण्डों से परिव्याप्त था । समाज में पुरोहितों का बहुमान था । यज्ञों में सहस्रों पशुओं की बलि दी जाती थी । 'स्वर्गकाम: यजेत, पुत्रकामः यजेत, घनकामः यजेत ' -- ये भौतिक कामनाएं ही जीवन का ध्येय बनी हुई थीं । वर्णाश्रम व्यवस्था ने समाज को अनेक वर्गों में विभक्त कर डाला था और उच्च-नीच की भावना यहां तक फैल गयी थी कि मनुष्य ही मनुष्य के लिए अस्पृश्य बन गया था । भगवान् महावीर के समय तक ये स्थितियां अपनी चरमावस्था तक पहुंच चुकी थीं । उन्होंने उन सब परिस्थितियों को देखा, उनके मूल को समझा और फिर उसके निराकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए साधना में लीन हो गये । उनकी साधना किसी आवेग या जोश का परिणाम नहीं थी । वे जोशीले नहीं, गम्भीर थे । पूर्ण युवावस्था में राज्य, ऋद्धि, 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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