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________________ १२८ चिन्तन के क्षितिज पर व्रत या महावत होता है। उसी की अपेक्षा से इसे अणु अर्थात् छोटा व्रत कहा जाता है। _ 'व्रत' यह इसलिए है कि इसमें विवेकपूर्ण संकल्प होता है । यह संकल्प आत्म सुधार में जहां स्थायित्व प्रदान करता है, वहां परिस्थिति-प्रेरित झंझाओं से जुझने की शक्ति भी देता है । असंकल्पित निर्णय अधूरे और कच्चे होते हैं। परिस्थिति, आवश्यकता और प्रलोभन आदि से प्रेरित होकर मनुष्य बहुधा उन्हें सहज रूप में ही बदल डालते हैं परन्तु जो संकल्पित निर्णय होते हैं, उन्हें प्राणों तक की बाजी लगाकर पूरा करने का प्रयास करते हैं। इसमें वैयक्तिक स्तर पर कहीं कुछ शिथिलता भी हो सकती है, परन्तु वह आपवादिक होती है। व्रत की भावना में सर्वत्र यही उद्दिष्ट होता है कि उसे प्राण-पण से पाला जाये, फिर चाहे वह व्रत 'महा' हो या 'अणु', पूर्ण हो या यथाशक्ति । व्यक्ति या समाज आत्म-सुधार की बात ऊपर कही गई है । उसके एक अन्य पहलू पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। भारतीय परम्परा में प्रायः प्रत्येक बात को अध्यात्म या धर्म के प्रकाश में देखा जाता है, इसलिए, वहां आत्म-सुधार पर विशेष बल दिया जाता है, जबकि अन्यत्र यह माना जाता है कि व्यक्ति का सुधार तब तक असम्भव है, जब तक कि समग्र समाज को ही सुधार के लिए विवश नहीं कर दिया जाता। सामाजिक परिस्थितियों के बिगड़ने पर आदमी बिगड़ता है और उनके सुधर जाने पर वह सुधर जाता है । आत्म-सुधार या व्यक्ति-सुधार की बात निरर्थक है । कुछ व्यक्ति यदि अपने आपको सुधारते भी हैं तो वे आखिर तक निभ नहीं पाते। ज्यों-त्यों निभते भी हैं तो परिणाम यह होता है कि मानसिक स्तर पर वे समाज से अत्यन्त दूर पड़ जाते हैं और समाज को सभी बुराइयों का मूल मानते हुए ही वे फिर जी पाते हैं। उपर्युक्त सभी बातें वस्तुतः अध्यात्म-परम्परा वाले के लिए ध्यान देने योग्य हैं । परन्तु साथ में यह भी कह देना चाहिए कि समाज-सुधार के पक्षधरों के लिए भी व्यक्ति-सुधार या आत्म-सुधार की बात उतनी ही ध्यान देने योग्य है। व्यक्तिहीन समाज का कहीं कोई अस्तित्व नहीं होता। समाज का विशाल भवन व्यक्ति की ईंटों से ही बनता है। कच्ची और टेढ़ी-मेढ़ी ईंटों से पक्के और सुन्दर भवन के निर्माण की आशा नहीं की जा सकती। समाज के अच्छे या बुरे होने का निर्णय उस समाज के व्यक्तियों के अच्छे या बुरे होने पर ही निर्भर होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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