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________________ निर्माण के निखरते दायित्व विवेक के मार्गदर्शन में मनुष्य इस धरती का अनुपम प्राणी है । अनन्तानन्त प्राणियों में उस जैसा दूसरा कोई नहीं। सभी प्राणी जीते हैं, मनुष्य भी जीता है, परन्तु उसका जीना एक पृथक अर्थ रखता है । श्वासोच्छ्वास के ग्रहण-विमोचन को ही जीवन कहा जाए तो इस सीमा तक मनुष्य भी सब प्राणियों के साथ है परन्तु मनुष्य का जीवन इतना मात्र ही नहीं है । अपने जीवन को उच्चस्थिति प्रदान करने के लिए मनुष्य के पास बहुत कुछ करणीय होता है। यदि मनुष्य सजग है तो अवश्य ही उसका जीवन कर्तव्य-बोध के द्वारा ही संचालित होता है। उसका विवेक आगे से आगे उसका मार्गदर्शन करता रहता है और वह क्रमश: उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता जाता है। चले सो पाये विवेक मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्नता प्रदान करता है। सभी प्राणी भोजन, विश्राम, सुरक्षा और सूख की आकांक्षा से परिचालित होते हैं, परन्तु अकेला मनुष्य ही है, जो इन सबसे आगे भी सोचता है, वैसा करने तथा बनने का मार्ग भी वह देर-सवेर खोज लेता है। और फिर एक समय ऐसा भी आता है जब वह वैसा बन भी जाता है। यद्यपि निर्णीत आदर्श के रूप में स्वयं को ढाल लेना कोई सीधा या सरल कार्य नहीं है। बहुत टेढ़ी खीर है, फिर भी कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो मार्गगत कठिनाइयों से नहीं घबराते । वे उद्दिष्ट तक पहुंचने के लिए चल पड़ते हैं। जो चलते हैं, वे पा भी लेते हैं । एक गीत में कहा गया है जो चलता है वह पाता है, बैठे उसको यम खाता है। यहां प्रगति के लिए रहा है, चलने का व्रत मूल ।। उद्देश्य प्राप्ति के लिए चलने वालों में अनेक ऐसे हो सकते हैं, जो मार्ग से भटक जाते हैं, श्रान्त और क्लान्त होकर रुक जाते हैं या फिर अधैर्यवश निराश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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