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________________ १०६ चिन्तन के क्षितिज पर वे हस्तिनापुर पधारे । वहां बाहुबलि का पुत्र सोमप्रभ राज्य करता था। उसके पुत्र श्रेयांस ने प्रपितामह के आगमन की बात सुनी तो तत्काल राजभवन से बाहर आया और भगवान् के चरणों में वंदन किया। उन्हें मुनिरूप में देखा तो उसे वह स्वरूप परिचित-सा लगा। ऊहापोह करने पर उसे तत्काल जातिस्मरण ज्ञान हो गया। पूर्व भव में गृहीत अपनी साधुता और उसकी समग्र चर्या उसके सामने स्पष्ट भासित हो गई। उसने कल्प्य-अकल्प्य को जाना तथा भोजन देने की विधि को भी जाना। श्रेयांस के प्रासाद में उसी दिन ताजे इक्षु रस से भरे हुए धड़े भेंट स्वरूप आये हुए थे। उस समय वही शुद्ध पदार्थ विद्यमान था। कुमार ने उसे ग्रहण करने के लिए बड़े श्रद्धासिक्त भाव से प्रार्थना की। भगवान् कर-पात्र ही थे । सर्वथा शुद्ध आहार देखकर उन्होंने अपनी दोनों अंजलियों को पात्रवत् बनाकर उसमें वह इक्षु-रस ग्रहण किया। एक वर्ष और चालीस दिनों की लम्बी अवधि के पश्चात् उन्होंने प्रथम भोजन किया। वह वैशाख शुक्ला तृतीया का दिन था। अक्षय तृतीया प्रथम दानदाता बनकर श्रेयांस ने अक्षय पुण्य तथा यश का अर्जन किया। वह दान भगवान् के महान् तप की संपन्नता में सहायक बनकर सदा-सदा के लिए अक्षय बन गया । इसीलिए इस तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उस दिन इक्षुरस का दान दिया गया था अतः इसे इक्षु-तृतीया भी कहा जाता है । यह दिन अब एक महत्त्वपूर्ण पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है। तपःपूत इसी दिन को किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने के लिए एक स्वतः सिद्ध शुभ मुहूर्त माना जाता है। वर्तमान वर्षी तप भगवान् ऋषभ ने संकल्प पूर्वक वर्ष भर के लिए तप प्रारंभ नहीं किया था । वह तो दान-पद्धति की अनभिज्ञता के कारण शुद्ध आहार न मिलने से स्वतः ही हो गया था। वर्तमान का वर्षी तप वर्ष भर के लिए संकल्पपूर्वक प्रारंभ किया जाता भगवान् का तप चैत्र कृष्णा ८ से प्रारंभ हुआ और उसका पारण अगले वर्ष की वैशाख शुक्ला ३ को पूरा हुआ। वर्तमान के वर्षी तप का संकल्प वैशाख शुक्ला ३ को ग्रहण किया जाता है और वह आगामी दिन से प्रारंभ होकर अगले वर्ष की वैशाख शुक्ला ३ को संपन्न होता है। भगवान् का वर्षी तप निरंतर निराहार के रूप में था, जबकि वर्तमान वर्षी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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