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________________ १०४ चिन्तन के क्षितिज पर पास लाये। उन्होंने उसे अपने युवापुत्र ऋषभ को पत्नी के रूप में सौंप दिया। ऋषभ ने अपनी सहोदरी सुमंगला के साथ-साथ सुनन्दा से भी विवाह किया। तभी से विवाह-पद्धति का प्रचलन हुआ। उसके बाद लोग सहोदरी के अतिरिक्त अन्य कन्याओं से विवाह करने लगे। खाद्य-समस्या का हल कुलकर-व्यवस्था के प्रारंभ काल से ही कल्पवृक्षों का क्रमिक ह्रास प्रारंभ हो गया था। उस समय लोगों ने अन्य वृक्षों के फल तथा कंद, मूल आदि को भोजन-सामग्री बनाया। बाद में बनवास छोड़कर ग्राम या नगर वास प्रारंभ होने पर कंदमूल एवं फलों की भी सर्व-सुलभता नहीं रही। ऋषभ ने तब मनुष्य द्वारा बोये जाने योग्य शाली, गोधूम, चणक आदि भोज्य अन्नों को चुना और कृषि पद्धति द्वारा उन्हें बोने एवं संगृहीत करने की विधि सिखलाई। वातावरण में अति स्निग्धता होने के कारण उस समय तक अग्नि उत्पन्न नहीं हुई थी। कालान्तर में स्निग्धता के साथ रूक्षता का आनुपातिक योग बना, तब वृक्षों के पारस्परिक घर्षण से अग्नि उत्पन्न हुई। वह फैली और वन जलने लगा। नयी वस्तु देखकर लोग भयभीत हुए। उन्होंने ऋषभ को उसकी सूचना दी। उन्होंने लोगों को अग्नि के उपयोग तथा पाक विद्या का प्रशिक्षण दिया। खाद्य समस्या का सहज हल उपलब्ध हो गया। कला, शिल्प और व्यवसाय ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को पुरुषोपयोगी ७२ कलाओं का प्रशिक्षण दिया। कनिष्ठ पुत्र बाहुबलि को विभिन्न प्राणियों के लक्षणों का ज्ञान दिया। बड़ी पुत्री ब्राह्मी को लिपि-ज्ञान और छोटी पुत्री सुन्दरी को गणित-ज्ञान दिया। उन दोनों को स्त्री-जनोपयोगी ६४ कलाएं भी सिखलाई। इनके अतिरिक्त चिकित्सा, अर्थ और धनुर्विद्या आदि विभिन्न विद्याओं का प्रशिक्षण देकर लोगों को सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत बनाया। जनोपयोगी वस्तुओं के निर्माण-प्रशिक्षण से अनेक प्रकार के शिल्पों का उद्भव हुआ। निवास के लिए गृह-निर्माण, अन्न आदि पकाने के लिए पात्र-निर्माण, कृषि, गृह एवं युद्ध आदि में उपयोगी यन्त्रों-औजारों का निर्माण, वस्त्र-निर्माण, चित्रकारी तथा क्षौर कर्म आदि। __ पदार्थों का विकास हुआ तब उनके विनिमय की भी आवश्यकता हुई, फलतः व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया गया । वस्तुओं के आयात-निर्यात तथा यातायात की सुलभता के लिए शकट, रथ आदि वाहनों का निर्माण हुआ। पदार्थ बढ़े तो संग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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