________________
अमूर्त चिन्तन
है । खोजना कोई बुरी बात नहीं है । खोज चाहे एक वैज्ञानिक करे या एक अध्यात्मवेत्ता करे, साधक करे । खोज - खोज है। वह आर्त्तध्यान या रौद्रध्यान नहीं है । शर्त इतनी है कि उस खोज के साथ राग-द्वेष की श्रृंखला है । किन्तु जहां शुद्ध सत्य की खोज है वहां केवल तत्त्व को खोजना है कि परमाणु क्या है ? इलेक्ट्रॉन क्या है ? प्रोटोन क्या है ? न्यूट्रॉन क्या है ? न्यूक्लियस क्या है ? यह सारी तत्त्व की खोज है। यह धर्म- ध्यान है । इस प्रकार मानसिक समस्याओं को खोजना, संकल्प शक्ति के प्रभाव को खोजना- ये सारी चीजें वैज्ञानिक कर रहे हैं। जो खोजें अध्यात्म के साधक को करनी चाहिए थीं वे सारी खोजें एक वैज्ञानिक कर रहा है । अध्यात्म-साधक इस ओर सुप्त है, उदासीन है । किन्तु वैज्ञानिक जागरूक है, प्रयत्नशील है । यह अध्यात्म जगत् को बहुत बड़ी चुनौती. है । वैज्ञानिक नि:स्पृह भाव से, राग-द्वेष रहित भाव से यह कार्य कर रहा है सत्य की खोज कोई भी करे, वह सत्य तक पहुंचता है। हम क्यों नहीं मानें कि सत्य की खोज करने वाला, चाहे फिर वह वैज्ञानिक हो या साधक उस अंश में अध्यात्म का साथी है जिस अंश में वह राग-द्वेष से शून्य होकर सत्य की खोज में लगा रहता है । इस मर्म को समझना चाहिए और साधकों को सत्य की खोज में लग जाना चाहिए ।
|
७६
हम कैसे जान सकें कि व्यक्ति में धर्म- ध्यान का अवतरण हुआ है या नहीं ? कसौटी क्या है ? प्राचीन साधकों ने इसकी कसौटी भी बताई है । जब धर्म- ध्यान का अवतरण होता है तब व्यक्ति में अर्थ की खोज स्पष्ट हो जाती है । कोई समस्या सामने आयी, तत्त्व सामने आया और ऐसा लगे कि उसका समाधान लिखा हुआ-सा है, तो समझना चाहिए कि व्यक्ति में धर्म-ध्यान घटित हो रहा है। वस्तु-सत्य की खोज करते-करते बहुत सारी बातें सहज ही प्रकट हो जाती हैं। एक बीज मिला और उसका सारा रहस्य प्राप्त हो जाएगा। एक वाक्य के आधार पर वह सारी बात समझ लेगा । पदानुसारिता, बीजबुद्धि, कोष्ठबुद्धि-ये सब धर्म-ध्यान करने वाले व्यक्ति के लक्षण हैं। धर्म- ध्यान की अनुभूति आंतरिक अधिक है और बाहरी कम। यह आंतरिक कसौटी है । व्यक्ति स्वयं इसका अनुभव कर सकता है कि उसमें धर्म-ध्यान उतर रहा है। उसका शील बदल जाता है। उसका स्वभाव बदल जाता है। उसमें मैत्री की भावना जाग उठती है । उसमें अहिंसा प्रस्फुटित होने लगती है । उसमें सत्य की प्रबल निष्ठा का उदय होता है । अचौर्य का विकास होता है । उसमें वासनाओं की विरति होती है । उसमें मध्यस्थभाव प्रकट होता है। उसकी मूर्च्छा घटती है। ये सब धर्म - ध्यान की आंतरिक कसौटियां हैं ।
1
I
धर्म- ध्यान की बाहरी कसौटियां भी हैं। इससे शरीर की निश्चलता सधती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org