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धर्म भावना
भगवान् महावीर से पूछा गया-'धर्म की श्रद्धा से क्या होता है ? उसका परिणाम क्या होता ?' भगवान् ने कहा-'धर्म-श्रद्धा से अनौत्सुक्य पैदा होता है। उत्सुकता समाप्त हो जाती है।' जिन स्पंदनों के प्रति, पौद्गलिक स्पंदनों के प्रति उत्सुकता थी, वह धर्म की श्रद्धा जागने से मिट जाती है। सारी उत्सुकता समाप्त हो जाती है। उत्सुकता समाप्त होते ही अध्यात्म के स्पंदनों का अनुभव होने लग जाता है। धर्म भावना
धर्म का अर्थ है स्वभाव और वे साधन जिनसे व्यक्ति स्वयं में प्रतिष्ठित होता है। धर्म को प्राण, द्वीप, प्रतिष्ठा और गति कहा है। व्यक्ति जब धर्म को जान लेता है, उससे सम्यक् परिचित हो जाता है तब उसके लिए जो कुछ है वह सब धर्म ही है। मेरी दृष्टि में धर्म की परिभाषा है___ * धर्म हमारे जीवन का वह आलोक है जो हमारी इन्द्रियों को, मन को
और बुद्धि को आलोकित करता है, प्रकाश से भर देता है। धर्म वह है जो हमारे जीवन की अन्धकारमय संस्कारों की परतों को प्रकाशमय बनाता है।
धर्म वह है जो इन्द्रियों को, बुद्धि को और मन को निर्मल बनाता है। * धर्म वह है जो इन्द्रिय, बुद्धि और मन को शक्तिशाली बनाता है।
कोई भी व्यक्ति अंधकार की गुफा में नहीं रहना चाहता, कोई भी व्यक्ति अज्ञानी नहीं रहना चाहता तथा कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति वीर्यहीन नहीं रहना चाहता। सब व्यक्ति प्रकाशी, ज्ञानी और वीर्यवान् बनना चाहते हैं।
अतीत का शोधन करना, अतीत के खजाने को खाली करना, यह है धर्म । यही है ध्यान का परिणाम या उद्देश्य । अतीत के परिणामों से बच जाना धर्म का उद्देश्य नहीं है। यह हो सकता है कि आज किसी व्यक्ति ने धर्म की आराधना प्रारम्भ की. वह अतीत के प्रति जागरूक बन गया, अतीत में जो भंडार भरा था, उसके प्रति इतना जागरूक हो गया कि वह उसे प्रभावित कर सकेगा। अतीत के संस्कारों के उदय में उसने एक रुकावट पैदा कर दी। धर्म की आराधना का अर्थ है वर्तमान में जागरूक
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