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अन्यत्व भावना
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पुद्गल नहीं हूं।' 'मैं मूर्त नहीं हूं।' यह अध्यात्म विकास की पहली भूमिका
जब यह अवस्था घटित होती है तब चिन्तन की धारा बदल जाती है। चिंतन की जो मूढ अवस्था थी, उसमें परिवर्तन आ जाता है। जब साधक कहता है-'मैं शरीर नहीं हूं,' तब इससे चिन्तन का स्रोत निकलता है जिसे हम 'अन्यत्व अनुप्रेक्षा' कहते हैं। जब यह बात स्पष्ट समझ में आ जाती है कि मैं शरीर से भिन्न हूं, मूर्छा पर इतना तीव्र प्रहार होता है कि मोह का किला ढह जाता है, क्योंकि मोह का उद्गम-स्थल है शरीर। आदमी शरीर को ही सब कुछ मानकर कार्य करता है। जब यह मोह टूट जाता है, यह भ्रांति टूट जाती है, अनादि-कालीन भ्रम की दीवार खंड-खंड हो जाती है तब यह स्पष्ट बोध होता है कि मैं शरीर नहीं हूं। इस बोध के साथ-साथ सारी विचारधाराएं बदल जाती हैं, मैं शरीर नहीं हूं, अहंकार की ग्रन्थि खुल जाती है। यह शरीर मेरा नहीं है-ममकार की गाढ़ ग्रन्थि खुल जाती है। उसे रास्ता मिल जाता है। रास्ता उसी को मिलता है जिसकी ममकार की ग्रन्थि खुल जाती है।
ममत्व की ग्रन्थि का आदि-बिन्दु है शरीर। जब यह गांठ खुल जाती है तब मार्ग स्पष्ट दीखने लग जाता है। जब अहंकार और ममकार-दोनों की गाठे खुल गयीं-'मैं शरीर नहीं हूं', 'शरीर मेरा नहीं है'-तब नये चैतन्य का उदय होता है। उस सूर्य का उदय होता है जो कभी पूर्वांचल में आया ही नहीं था। कभी उगा ही नहीं था। जब ऐसे सूर्य का उदय होता है तब जीवन की सारी दिशा बदल जाती है। प्रश्न हो सकता है कि क्या इस भूमिका में जीने वाला कभी व्यवहार की भूमिका में जी सकेगा ? मैं मानता हूं कि वह अच्छी तरह से जी सकेगा। किन्तु यह सम्भव कैसे होगा ? जिसने यह मान लिया कि मैं शरीर नहीं हूं, शरीर मेरा नहीं है क्या वह शरीर के प्रति उदासीन नहीं हो जाएगा ? क्या वह शरीर के प्रति विरक्त नहीं हो जाएगा ? क्या यह शरीर के प्रति उपेक्षा नहीं है ? क्या ऐसा व्यक्ति जीवन को चला पायेगा ? जो व्यक्ति शरीर के प्रति उपेक्षा बरतेगा, क्या वह देश के प्रति अनुरक्त रह पायेगा ? वह अपने दायित्वों और कर्तव्यों को कैसे निभा पायेगा ? ये प्रश्न सहज हैं, किन्तु इन प्रश्नों में कोई व्यावहारिक कठिनाई नहीं है। जिसने यह स्पष्ट रूप से जान लिया कि शरीर भिन्न है और मैं भिन्न हूं, उसने शरीर के साथ सम्बन्ध की एक योजना कर ली। उस सम्बन्ध को अनेक रूपकों में अभिव्यक्ति दी गई है। महावीर ने कहा-शरीर नौका है और आत्मा नाविक है। उपनिषदकारों ने कहा-शरीर
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