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अन्यत्व भावना
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अनुभव होता है, यह सृष्टि भी संयोगात्मक है। यह एक सराय है जहां पथिक विभिन्न दिशाओं से आकार मिलते हैं, विश्राम करते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं। पथिकों के साथ तादात्म्य कैसा ? उनका संयोग कितने दिनों का हो सकता है ?
समस्त योग-वियोग में अपने को न जोड़कर जीना ही अन्यत्व भावना का ध्येय है। भौतिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व की पहचान
_ आध्यात्मिक व्यक्तित्व में पदार्थ का भोग होगा। आध्यात्मिक व्यक्ति खाएगा, पीएगा, कपड़े पहनेगा, मकान में भी रहेगा। वह सब कुछ करेगा, पर जुड़ेगा नहीं। वह यह कभी नहीं कहेगा-मेरा कपड़ा, मेरा मकान। वह कहेगा-इस मकान में मैं अभी रह रहा हूं। यह कपड़ा मेरे पहनने के काम आ रहा है। गांवों में जब लोगों से पूछते हैं-क्या यह मकान तुम्हारा है ? घर का मालिक कहता है-'मकान किसका ! भगवान् का महाराज ! मैं तो यहां रहता हूं।' इस कथन के पीछे एक सिद्धान्त है। सचाई यह है कि मकान किसका हो सकता है ? किसी का नहीं हो सकता। आज तक भी यह संपदा
और भूमि शाश्वत कन्याएं हैं, कुंआरी कन्याएं हैं। आज तक इनका पाणिग्रहण नहीं हुआ, विवाह नहीं हुआ। संपत्ति शाश्वत कुंवारी है। अनन्त काल बीत जाने पर भी वैसी-की-वैसी रहेगी।
पदार्थ का भोग करना और पदार्थ के साथ ममत्व को जोड़ना-ये दोनों भिन्न बातें हैं। ये दोनों एक नहीं हैं। भौतिक व्यक्तित्व में पदार्थ का उपभोग होता है, ममत्व जुड़ता है। आध्यात्मिक व्यक्तित्व में पदार्थ का उपभोग अवश्य होता है, पर ममत्व नहीं जुड़ता है। उसमें ‘पदार्थ' और 'मेरा'-ये दोनों अलग रहते हैं, जुड़ते नहीं। स्वतन्त्रता की प्रक्रिया
हमारी परतन्त्रता का पहलू है-रासायनिक प्रतिबद्धता। जीवन का दूसरा पहलू है-स्वतन्त्रता। जब साधना के द्वारा चेतना बदलती है तब रसायनों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। जहर का कार्य है मार डालना। क्या जहर मीरां को मार सका था ? मीरां ने जहर का प्याला पीया। कोई असर नहीं हुआ। भयंकर सर्प चंडकौशिक क्या महावीर को मार सका था ? उसकी एक फुफकार से आदमी राख का ढेर हो जाता था। उसने महावीर को तीन बार डसा, पर कोई असर नहीं हुआ।
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