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अमूर्त चिन्तन
संयोग मात्र संयोग है। ये शरीर, कपड़े, मकान सब संयोग हैं। क्रोध आदि कषाय तथा बीमारियां- ये सब संयोग हैं। ये स्वभाव नहीं, विभाव हैं ।
आदमी अकेला तब होता है जब ममकार और अहंकार का बन्धन टूट जाता है, आत्मा की सन्निधि प्राप्त हो जाती है । जब अकेलेपन का अनुभव गहरा होता चला जाता है, तब यह सचाई प्रत्यक्ष हो जाती है कि 'मैं अकेला हूं।' इस परिप्रेक्ष्य में एक प्रश्न उभरकर आता है कि क्या इस चिन्तन से सारे पारिवारिक सम्बन्ध टूट नहीं जाएंगे ? यह प्रश्न उभर सकता है किन्तु हम एकांगी दृष्टिकोण से विचार न करें। जीवन यात्रा को चलाने के लिए व्यवहार की भूमिका पर यह बात भी जरूरी है कि 'मैं अकेला नहीं हूं। मेरे साथ अनेक सम्बन्ध जुड़े हुए हैं । मेरे साथ परिवार का गांव का, राष्ट्र का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। मैं इन सूक्ष्म धागों से बंधा हुआ हूं।' एक ओर व्यवहार की भूमिका पर आदमी अपने आपको हजारों-हजारों धागों से बन्धा अनुभव करे और अध्यात्म की भूमिका पर उन धागों से मुक्त अनुभव करे । दोनों स्थितियां साथ-साथ चलें। दोनों का सामंजस्य हों । व्यवहार की दृष्टि भी चले और निश्चय की दृष्टि, प्रेक्षा की दृष्टि भी चले । जो सामाजिक जीवन जीता है उसे इन धागों में बन्धा रहना पड़ता है । किन्तु केवल इसी में रह जाए और आध्यात्मिक चेतना न जाग पाए तो मूर्च्छा इतनी सघन हो जाती है और वे धागे मजबूत रस्से बन जाते हैं, फिर उनसे छूटना सरल नहीं होता ।
मैं अकेला हूं
बुढ़ापा भी एक समस्या है। मैं मानता हूं कि यह बहुत बड़ा समाधान भी है । हमारा एक सूत्र है - एकत्व की अनुभूति का । महावीर ने कहा, 'तुम अकेले हो, कोई तुम्हारा नहीं है।' यह तथ्य हृदयंगम नहीं होता । जब तक आदमी जवान होता है, परिवार के पालन-पोषण में लगा रहता है, परिवार की ओर से उसे असीम प्यार मिलता है, स्नेह मिलता है और सभी उसे आशाभरी दृष्टि से देखते हैं, उसे सम्मान और आदर देते हैं, तब तक वह कभी अनुभव नहीं कर पाता कि वह अकेला है । यह अनुभव होता ही नहीं। वह कहता है, 'मैं कैसे मान लूं कि मैं अकेला हूं।' यह मेरा परिवार मेरे बिना एक क्षण भी जी नहीं सकता। मेरे माता-पिता, भाई-बहिन, पत्नी - पुत्री मेरे बिना नहीं रह सकते। ऐसी स्थिति में अकेलेपन का सूत्र उसे प्रतिकूल लगता है। किन्तु जब वह बूढ़ा होता है, सबको उससे प्राप्त होने वाले स्वार्थ बन्द हो जाते हैं, किसी के काम का आदमी नहीं रहता, निकम्मा हो जाता है, आकर्षण के सारे धागे
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