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भव भावना
अलोभ का अर्थ है अकिंचनता । जिसका अपना कुछ भी नहीं, वह अकिंचन है । अकिंचन की अवस्था में होने वाला आनन्द अनिर्वचनीय और आत्मगम्य होता है। एक योगी ने कहा है
अकिंचनोऽहमित्यास्व, त्रैलोक्याधिपतिर्भवेत् । योगिगम्यमिदं प्रोक्तं, रहस्यं परमात्मनः । ।
अपने आपको अकिंचनता की अनुभूति में रखो। उस स्थिति में तुम तीन लोक के अधिपति बन जाओगे। यह परमात्मा का योगिगम्य रहस्य है ।
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