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अनित्य भावना
भय है मौत का । शासन-तंत्र ने दण्डशक्ति का विकास किया है। विविध प्रकार के दण्ड उपयोग में लाये जाते हैं- बांधना, जेल में डाल देना, हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां डालना, मारना पीटना | उसके बाद भी अन्तिम दण्ड है - फांसी की सजा, मौत की सजा ।
जो आदमी जीते जी मरना सीख लेता है, मृत्यु का साक्षात्कार कर लेता है, मृत्यु का अनुभव कर लेता है, अपने शरीर को शिथिल बनाकर सारे अवयवों को मृतवत् करना सीख जाता है, सचमुच वह आदमी सारी समस्याओं का, सभी प्रकार के भयों का और सारी कठिनाइयों का पार पा लेता है।
हम अनित्य की अनुप्रेक्षा करते हैं । उस अनुप्रेक्षा में से ही सचाइयों को देखते हैं, आनन्द को निकालते हैं और अपने भीतर की गहराइयों में जाने का प्रयत्न करते हैं, उसकी साधना करते हैं । यह सारा दृष्टिकोण का ही परिवर्तन है । अन्यथा यदि किसी को कहा जाए कि तुम मृत्यु का अनुभव करो तो वह सोचेगा कि कैसी मूर्खता की बात कर रहा है ? जीने की बात करे तो वह अच्छी भी लग सकती है, किन्तु यह तो मौत की बात कर रहा है । बुरी बात है। जीने की बात अच्छी लगती है। मौत की बात बुरी लगती है । लोग इसे अपशकुन मान लेते हैं, बुरा मान लेते हैं । किन्तु साधक ऐसा नहीं मान सकते। वे मौत की बात को अच्छा मानते हैं । इसीलिए इसे अपने अभ्यास का अंग बनाकर साधना चलाते हैं । अनित्य अनुप्रेक्षा से यह दृष्टि का परिवर्तन घटित होता है
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श्रुतज्ञान का प्रयोग - अनित्य अनुप्रेक्षा
शरीर में कंपन हो रहे हैं । वे निरन्तर होते हैं, यह जानना प्रेक्षा है । अनुप्रेक्षा में यह जानना होता है कि वे कंपन अनित्य हैं। कंपन स्थायी नहीं होते ! कंपन अनित्य होता है। शरीर में होने वाले सारे कम्पन अनित्य हैं । शरीर में बीमारी हुई, वह भी अनित्य है । इस प्रकार की अनुप्रेक्षा करते-करते उस बिन्दु पर पहुंच जाते हैं, जहां जाने पर मूर्च्छा का चक्र टूट जाता है । भगवान् महावीर ने दीक्षा लेने से पूर्व छह महीनों तक अनित्य अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया था । सामान्यतः यही सोचा जाता है कि भगवान् तो भगवान् के रूप में ही जन्मे थे। कोई भी आदमी भगवान् बनकर नहीं जन्मता । आदमी आदमी के ढंग से ही जन्मता है, आदमी के ढंग से ही आगे बढ़ता है। महावीर ने अभ्यास किया, प्रयोग किये और चलते-चलते भगवान् बन गये। महावीर भगवान् बनने की योग्यता लेकर जन्मे, पर जन्मते ही भगवान् नहीं बने थे । इसीलिए माना जाता है कि प्रत्येक तीर्थंकर जन्म के समय द्रव्य-तीर्थंकर होता
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