SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ अमूर्त चिन्तन जायेंगे तब हमारे लिए पदार्थ पदार्थ मात्र होगा और चेतन चेतन होगा। पदार्थ का उपयोग हो सकता है, पदार्थ का संयोग हो सकता है, किन्तु पदार्थ शाश्वत नहीं हो सकता। अशाश्वत को शाश्वत मानने का आरोप, विजातीय को सजातीय मानने का आरोप, केवल मानने के कारण ही होता है। यदि जान लिया जाता है तो सारे आरोप नष्ट हो जाते हैं। जब तक मन पर मोह या मूर्छा का मैल जमा रहता है, तब तक व्यक्ति सब कुछ मानता चला जाता है, जानता कुछ भी नहीं है। पदार्थ के मूल स्वरूप को जाने बिना उसे जाना नहीं जा सकता। ___मनुष्य नाम और रूप के चक्कर में पड़कर सब कुछ मानता चला जा रहा है और यह झूठा दंभ भरता है कि वह सब कुछ जानता है। हम व्यक्तियों को नाम से जानते हैं। हमने नाम का एक चौखट बना रखा है। उस चौखटे में जो आकृति आती है उसे हम अमुक नाम से जान लेते हैं। नाम और आकृति को हटा दें, फिर हम कुछ नहीं जान पाते। हमारा भ्रम मान्यता के आधार पर पल रहा है। गहराई में हम उतरकर देखें । सारा संसार मानने की कारा में बन्दी है। जानने की बात उससे बहुत दूर है। । अनप्रेक्षा के माध्यम से भ्रान्तियों और विपर्ययों को तोड़ा जा सकता है। अनुप्रेक्षा के द्वारा मन पर जमे मैल को काटा जा सकता है। अनुप्रेक्षा के द्वारा मानने की भूमिका से उठकर जानने की भूमिका तक पहुंचा जा सकता है। दृष्टिकोण का परिवर्तन शरीर अनित्य है, इस सचाई में भी आनन्द का अनुभव होता है। शरीर चयापचयधर्मा है, कभी इसका चय होता है और कभी अपचय होता है। कभी यह पुष्ट होता है और कभी यह क्षीण होता है। शरीर क्षीण होता है, इसमें भी सचाई का बोध होता है। यह शरीर विपरिणामधर्मा है, विविध परिवर्तनों में से गुजरता है। कभी इस पर सर्दी का प्रभाव होता है, कभी गर्मी का तो कभी आंधी-तूफान का। कभी यह बीमारी की यातना झेलता है, तो कभी परिस्थितियों से पीड़ित होता है। कभी कुछ, कभी कुछ घटित होता है। अनेक-अनेक परिवर्तनों में से यह गुजरता है। बीमारी हमें प्रिय नहीं होती, किन्तु बीमारी की सचाई का अनुभव करना हमें सचमुच प्रिय होगा। बीमारी-यह सचाई हमें सचमुच सत्य की ओर ले जाती है, यथार्थ की ओर ले जाती है। यह शरीर है। इसमें मृत्यु घटित होती है, इसमें बुढ़ापा आता है, आदमी मर जाता है। मृत्यु का अनुभव करना भी बहुत बड़ा आनन्द है। इस अनित्य अनुप्रेक्षा के द्वारा हम जीते जी मरना सीख लेते हैं। और जो आदमी मरना सीख लेता है, वह सारी कठिनाइयों का पार पा जाता है। दुनिया में सबसे बड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy