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________________ २६० अमूर्त चिन्तन एगो मे सासओ अप्पा, नण दंसण संजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा।। इसके भावार्थ पर अनुचिंतन करें ज्ञान-दर्शनयुक्त मेरी आत्मा ही शाश्वत है। बाकी सारे पदार्थ क्षणिक व अशाश्वत हैं। ५ मिनट ९. महाप्राण ध्वनि के साथ ध्यान सम्पन्न करें। २ मिनट अनित्य-अनुप्रेक्षा जिस स्थान पर बैठे हैं, यह मात्र संयोग है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। स्थान के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। स्थान से विसंबन्ध का अनुभव करें। जिस कमरे में बैठे हैं, यह मात्र संयोग है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। कमरे के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। कमरे से अपने विसंबन्ध का अनुभव करें। जिस आसन पर बैठे हैं, यह मात्र संयोग है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। आसन के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। आसन से अपने विसंबन्ध का अनुभव करें। शरीर पर जो वस्त्र पहने हुए हैं, यह मात्र संयोग है। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। वस्त्र के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। वस्त्र से अपने विसंबंध का अनुभव करें। यह शरीर मात्र एक संयोग है, जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। शरीर के साथ संयोग का अनुचिन्तन करें। अनुचिन्तन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। शरीर से अपने विसम्बन्ध का अनुभव करें। ... शरीर में होने वाले ये रोग मात्र एक संयोग हैं। जो संयोग होता है, उसका निश्चित वियोग होता है। रोग के साथ संयोग का अनुचिंतन करें। अनुचिंतन करते-करते अनुभव के स्तर पर आएं। रोग से अपने विसंबंध का अनुभव करें। ये मन की उलझनें, मानसिक समस्याएं, मात्र एक संयोग हैं। जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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