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अमूर्त चिन्तन
की मैत्री किसी के प्रति नहीं होती। उसका आदर्श होता है-मित्ती मे सव्वभूएसु' विश्व के समस्त प्राणी, फिर वे कितने ही छोटे या बड़े क्यों न हों, उनके प्रति समत्व की अनुभूति। यह एक प्रकार की आत्म-शक्ति है। इसका विकास सबमें नहीं हो सकता। जिन्होंने मैत्री की शक्ति का पूरा विकास कर लिया उनके लिए संसार में कोई अमित्र हो ही नहीं सकता। वे ऐसे अमृत का सिञ्चन करते हैं, जिससे शत्रुता का विष धुल जाता है और व्यक्ति अमृतमय बन जाता है।
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