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________________ सह-अस्तित्व अनुप्रेक्षा २०१ प्रत्येक पाणी दूसरे के लिए आलम्बन बनता है, सहारा है। एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के लिए आलम्बन बनता है। संघर्ष प्रकृति का नियम नहीं है। वह आरोपण है। - महावीर ने कैवल्य प्राप्त कर जिस धर्म का प्रतिपादन किया उसकी आत्मा है-समता। उनके धर्म की उत्पत्ति समता से होती है और उसकी निष्पत्ति भी समता से होती है। अहिंसा, अपरिग्रह, सह-अस्तित्व, समन्वय, सापेक्षता और अनेकांत-ये सब उसी समता के अंग हैं। महावीर की अहिंसा में विषमता के लिए कोई स्थान नहीं है। ढाई हजार वर्ष पहले कुछ लोग धन के आधार पर बड़े-छोटे माने जाते थे। कुछ लोग जातीयता के आधार पर बड़े-छोटे माने जाते थे। कुछ लोग शास्त्रीय ज्ञान के आधार पर बड़े-छोटे माने जाते थे। किन्तु महावीर ने इन मान्यताओं को अवास्तविक बतलाया और उन्होंने कहा-'मनुष्य में मौलिक एकता है, समता है। उसे इन काल्पनिक मूल्यों द्वारा विखंडित नहीं करना चाहिए। बड़ा वह नहीं है, जो धनी है। बड़ा वह है जिसमें त्यागने की क्षमता है। बड़ा वह नहीं है, जो तथाकथित उच्चकुल में जन्मा है। बड़ा वह है जो सच्चरित्र है। बड़ा वह नहीं है जो शास्त्रों का पंडित है। बड़ा वह है जो संयमी है। बड़प्पन और छुटपन, ये सापेक्ष मूल्य हैं। सचाई यह है कि सही अर्थ में बड़ा वह है जिसमें त्याग की शक्ति, सच्चरित्रता और संयम है।' महावीर के समता के सिद्धांत ने भारतीय मानस को बहुत प्रभावित किया। ढाई हजार वर्ष के बाद वह प्रभाव बढ़ा है, उसमें कोई कमी नहीं आयी है। आज का मनुष्य समता के सिद्धांत को जितना मूल्य देता है, उतना ढाई हजार वर्ष पहले का मनुष्य नहीं देता था। यह सिद्धांत शाश्वत सिद्धांत है। जो शाश्वत होता है उसमें युगीन होने की क्षमता होती है। महावीर ने ढाई हजार वर्ष पहले जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, वे सिद्धांत वर्तमान युग के लिए भी बहुत मौलिक और उपयोगी हैं। महावीर की अहिंसा का मुख्य आधार है-सह-अस्तित्व। इनके अनुसार परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले तत्त्व साथ रह सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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