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सह-अस्तित्व अनुप्रेक्षा
सामंजस्य के द्वारा विचार-भेद रहते हुए भी विचार-भेद से उत्पन्न होने वाले संघर्ष को मिटाया जा सकता है, विचार-भेद से उठने वाले स्फुलिंगों को शांत किया जा सकता है। अनेक व्यक्ति रहें, अनेक विचार रहें। और उनके रहते हुए भी विचारों की टकराहट न हो, स्फुलिंग न उछलें, संघर्ष न हो-यह सम्भव हो सकता है। इस दर्शन के आधार पर महावीर ने एक सूत्र दिया-सह-अस्तित्व का। इसका तात्पर्य है कि विरोधी व्यक्तियों, विरोधी विचारों और विरोधी धर्मों का सह-अस्तित्व हो सकता है। वे एक साथ रह सकते हैं। सामान्य धारणा यह है कि दो विरोधी धर्म एक साथ नहीं रह सकते। भगवान् महावीर ने कहा, 'दो विरोधी धर्म एक साथ रह सकते हैं।' दाशीनक भाषा में नित्य-अनित्य सामान्य-विशेष-ये एक साथ रहते हैं। नित्य-अनित्य का और अनित्य नित्य का विरोधी है, सामान्य विशेष का और विशेष सामान्य का विरोधी है, पर एक साथ रहते हैं। अस्ति और नास्ति, होना
और न होना-दोनों साथ-साथ रहते हैं। दोनों विरोधी हैं, पर उनका सह-अस्तित्व है। जहां अस्ति और नास्ति, नित्य और अनित्य, सामान्य और विशेष-इनका सह-अस्तित्व प्रतिपादित किया गया, वहां समझाया गया कि जिन्हें हम विरोधी मानते हैं, वे वस्तुत: विरोधी नहीं हैं। इस जगत् में एक भी तत्त्व ऐसा नहीं है, जिसे हम कह सकें कि यह इसका सर्वथा विरोधी है या सर्वथा अविरोधी है। जिसे हम विरोधी मानते हैं, वह अविरोधी भी है। जिसे हम अविरोधी मानते हैं, वह विरोधी भी है। दोनों धर्म एक साथ चलते हैं। दोनों का सह-अस्तित्व है।
व्यवहार के धरातल पर उन्होंने सह-अस्तित्व का प्रतिपादन किया और कहा, 'एक साथ रहा जा सकता है।' हम जानते हैं कि जहां सर्दी है, वहां गर्मी नहीं है और जहां गर्मी है वहां सर्दी नहीं है, किन्तु यह सचाई नहीं है। सर्दी और गर्मी में मात्र डिग्री का अंतर है, मात्रा का भेद है। जब शरीर का तापमान ९८ डिग्री होता है, तब हम कह देते हैं कि तापमान सामान्य है, ज्वर नहीं है। जब वह बढ़कर सौ डिग्री हो जाता है, तब हम कह देते हैं कि ज्वर हो गया। गरम-ठंडा, अच्छा-बुरा-ये सब हमारी अपेक्षाएं हैं और इसका निर्णय सापेक्षता के आधार पर ही होता है। यदि हम सापेक्षता को न देखें और निरपेक्ष विचार करें तो किसी को गरम या ठंडा, अच्छा या बुरा नहीं
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