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अमूर्त चिन्तन
है तब, जब प्रकाश में होता है। अकेले में और अंधेरे में जो सचाई प्राप्त होती है, वह अपने पर ही आधारित हो सकती है।
कई आदमी राष्ट्र की भलाई के लिए सच्चे होते हैं और कई अपनी भलाई के लिए। सचाई का बीज हर मनुष्य में होता है, वह निमित्त पाकर अंकुरित हो उठता है। जो अपनी आंतरिक प्रेरणा से अंकुरित होता है, वह परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता। बाहरी प्रेरणा से अंकुरित होने वाले के लिए यह निश्चित भाषा नहीं बनाई जा सकती है कि वह परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता। पर प्रामाणिकता लोकतंत्र का सौन्दर्य तो है ही, फिर चाहे वह किसी भी निमित्त से प्रस्फुटित होता हो।
चेतना का विकास ऐसा हो कि वह पछाड़ने वाली चेतना न हो, उठाने वाली चेतना हो। उठाने वाली चेतना का पहला सूत्र है-प्रामाणिक व्यवहार । नैतिक चेतना के जाग जाने पर जो व्यवहार होगा वह प्रामाणिक ही होगा। नैतिकता का संबंध दो से होता है और आध्यात्मिकता का संबंध एक से होता है। नैतिकता द्विष्ट है-दो पर आधृत है। अकेले आदमी के समक्ष नैतिकता-अनैतिकता का कोई प्रश्न नहीं होता। जब दो होते हैं तब प्रश्न होता है कि कैसा व्यवहार किया जाए। नैतिक व्यक्ति बेईमानीपूर्वक व्यवहार नहीं करेगा। वह पूरा प्रामाणिक व्यवहार करेगा। प्रामाणिकता का मूल्य
तिष्ठेद् वाय: द्रवेदद्रिः, ज्वलेत जलमपि क्वचित् । तथापि ग्रस्तो रागाद्यैर्नाप्तो, भवितुमर्हति ।।
वायु हमेशा चलती है, कभी वह भी ठहर जाए। पहाड़ कठोर होता है, कभी वह भी तरल हो जाए। पानी ठंडा होता है, कभी वह भी जलने लग जाए। यह सब हो सकता है, पर राग-द्वेष से ग्रस्त व्यक्ति कभी आप्त नहीं हो सकता।
आप्त वह है जो राग-द्वेष से ग्रस्त नहीं है। आप्त वह है जो प्रामाणिक है। दुनिया में सबसे बड़ी चीज होती है प्रामाणिकता। जिसमें प्रामाणिकता नहीं है, वह धार्मिक नहीं हो सकता। धर्म का मूल है-प्रामाणिकता, सच्चाई। भगवान् महावीर ने कहा-'सच्चं भयवं' सत्य ही भगवान् है। जैसा कहना वैसा ही आचरण करना, सत्य है। तराजू कभी पक्षपात नहीं करता। मीटर से कपड़े का नाप ठीक मिलता है। घड़ी से अप्रामाणिकता न चाहने वाला यदि अपने जीवन में अप्रामाणिकता बरतता है, तो वह कितना बड़ा धोखा है। जिसने धर्म को थोड़ा-बहुत समझा है, वह अपने जीवन में प्रामाणिकता
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