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प्रामाणिकता अनुप्रेक्षा
नैतिकता का एक अर्थ है-प्रामाणिकता। प्रामाणिकता तीन प्रकार की होती है-वचन की प्रामाणिकता, अर्थ की प्रामाणिकता और व्यवहार की प्रामाणिकता। वचन की प्रामाणिकता भारतीय संस्कृति का एक बहुत उज्जवल पक्ष रहा है। जो बात मुंह से कह दी वह लोहे की लकीर बन गई। लिखने की जरूरत नहीं, किसी की साक्षी की जरूरत नहीं। बस, मुंह से जो वचन कह दिया, प्राण चले जाएं पर वचन को नहीं तोड़ना। हमारा इतिहास इस वचन की प्रामाणिकता से भरा पड़ा है। गुजरात के एक श्रेष्ठी की घटना का उल्लेख करना चाहता हूं। एक व्यापारी और बहुत प्रसिद्ध व्यापारी । नाम था भैंसाशाह । घटना गुजरात की है। रहने वाले थे राजस्थान के। गुजरात में गये थे। आवश्यकता हो गई व्यापार में एक लाख मुद्रा चाहिए। कहां से मिले। अपरिचित थे, नया क्षेत्र और चाहिए लाख रुपया। आज तो लाख रुपयों का बहुत मूल्य नहीं है, पर कल्पना करें आज से पांच सौ वर्ष पूर्व लाख रुपये का कितना मूल्य था। बड़ी विचित्र स्थितियां थीं। भैंसाशाह एक बड़े सेठ के पास गया। जाकर कहा-लाख रुपया चाहिए। पूछा-आपका नाम ? भैंसाशाह । नाम प्रसिद्ध था। सेठ ने कहा कि आप ले लें, लेकिन फिर भी मैं चाहता हूं कि आप कुछ अनुबंध कर लें तो अच्छा होगा। उसने कहा-कोई जरूरत नहीं, कोई आवश्यकता नहीं। अगर आपको विश्वास न हो तो यह मूंछ का एक बाल, भैंसाशाह की मूंछ का एक बाल रख लें और लाख रुपय दे दें। तत्काल लाख रुपये निकालकर दे दिये। काम हो गया। लाख रुपये पुनः लौटा दिए। आज लगता है कि मूंछ के बाल की बात दूर है, पूरी मूंछ भी रख दें तो शायद लाख रुपया वापस न आये। बड़ा कठिन काम है।
प्रामाणिकता का पहला और प्रधान विषय है-वाचिक प्रामाणिकता।
प्रामाणिकता का दूसरा विषय है-आर्थिक प्रामाणिकता। अर्थ के सम्बन्ध में प्रामाणिकता का विकास हुआ था । बहुत जबरदस्त विकास हुआ था। परिभाषा की गई कि पवित्र कौन होता है ? अर्थशुचि: शुचि:-जो आर्थिक मामले में पवित्र होता है. वास्तव में वह व्यक्ति पवित्र होता है। आर्थिक पवित्रता की पुरानी घटनाएं भी हैं। नई घटना भी आज हमारे सामने है। नयी घटना है आचार्य नरेन्द्रदेव की। बहुत बड़े विद्वान् और बहुत बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं आचार्य नरेन्द्रदेव । वाइस चांसलर थे। तांगे में जा रहे थे।
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