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________________ १७४ अमूर्त चिन्तन है। समता का बहुत बड़ा परिणाम है मानसिक स्वास्थ। जिस व्यक्ति ने समता का मूल्यांकन नहीं किया, उसने अपने मानसिक स्वास्थ्य को कभी भी संजोकर रखने का प्रयत्न नहीं किया। जो व्यक्ति समता का अनुभव करता है, संतुलन का अनुभव करता है, वह व्यक्ति अपने मानसिक स्वास्थ्य को एक बहुत बड़ी धरोहर मानकर उसकी सुरक्षा करता है। समता का होना मानसिक स्वास्थ्य का होना है और मानसिक स्वास्थ्य का होना समता का होना है। मन का प्रशिक्षण दर्शन का एक आयाम है-मन का प्रशिक्षण। हम मन को प्रशिक्षित कर, मन को सूक्ष्म बनाकर जितना देख सकते हैं उतना स्थूल मन के द्वारा नहीं देख पाते। मन को प्रशिक्षित करने के अनेक सूत्र हैं। उनमें पहला सूत्र है-भावक्रिया। भावक्रिया का अर्थ है-कर्म और मन का सामंजस्य । कर्म और मन-दोनों साथ-साथ चलें। मन कहीं भटक रहा है और क्रिया कुछ हो रही है, यह विसंवाद है। मन को प्रशिक्षण देने का एक मात्र उपाय है ध्यान । ध्यान सधता है तो मन सध जाता है। खाए तो मन खाने की स्मृति में रहे, चले तो मन चलने की स्मृति में रहे, बोले तो मन बोलने की स्मृति में रहे, सोचें तो मन मस्तिष्क की प्रक्रिया में जुटा रहे, यह है कर्म और मन का सामंजस्य । भावक्रिया दर्शन का महत्त्वपूर्ण आयाम है। जब भावक्रिया सध जाती है तब ध्यान की पद्धति केवल एक घंटा बैठकर करने की पद्धति नहीं रहती, वह समग्र जीवन दर्शन बन जाता है। फिर प्रत्येक क्रिया में ध्यान बना रहेगा। फिर चाहे व्यक्ति झाडू लगाएगा, तब भी ध्यान होगा। हाथ झाडू लगाएगा तो मन भी साथ-साथ झाडू लगाने की दिशा में संलग्न हो जाएगा। यह नहीं होगा कि हाथ तो झाडू लगाए और मन कहीं सिंहासन पर जाकर बैठ जाए। यह व्यक्तित्व का विभाजन नहीं होगा। यह खंडित व्यक्तित्व नहीं होगा। जिस काम में शरीर व्याप्त है, उसी काम में मन व्याप्त हो जाएगा। ऐसा नहीं होगा कि मन आदेश देकर कहीं चला जाए और शरीर बेचारा काम करता रहे। यह स्वामी और सेवक का संबंध भावक्रिया में नहीं रहेगा। वहां दो साथियों का संबंध होता है मन और शरीर में। दोनों साथ-साथ काम करेंगे। दोनों साथ-साथ विश्राम करेंगे। मन काम करेगा तो शरीर भी काम करेगा। मन विश्राम करेगा तो शरीर भी विश्राम करेगा। दोनों का पूरा सामंजस्य होगा। भावक्रिया मन को प्रशिक्षित करने का पहला सूत्र है। इससे मन पटु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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