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________________ अध्यात्म और विज्ञान अनुप्रेक्षा १६५ नहीं जुड़ा तो धर्म निर्जीव हो जाएगा। आज धर्म का गुरु अपने शिष्य को कहता है-गुस्सा मत करो, नशा मत करो, शराब छोड़ो, मांस छोड़ो। पर अगर प्रश्न आए कि कैसे छोडूं तो बहुत बड़ी समस्या हो जाती है। तर्कशास्त्र का एक नियम है कि कारण है तो कार्य होगा। धर्म एक कारण है बुराइयों को छुड़ाने का, आदतों को बदलने का। जब धर्म है तो आदतें निश्चित बदलेंगी। अगर बुराइयां नहीं छूटतीं, आदत नहीं बदलती तो यह समझ लेना चाहिए कि हम धर्म के नाम पर कुछ और ही कर रहे हैं। मैंने धर्म को विज्ञान के संदर्भ में इसलिए समझने का प्रयत्न किया है कि आज धर्म की जितनी अच्छी व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टि में प्राप्त हो सकती है उतनी केवल मान्यताओं के आधार पर नहीं हो सकती। हमारे शरीर में जितनी बुराइयों की व्यवस्थाएं हैं, उतनी ही बुराइयों को टिकाने की व्यवस्थाएं हैं। इतने अपार रहस्य हैं शरीर के। मुझे आज १०-१५ वर्ष हो गए पढ़ते-पढ़ते। अभी तक मैं नहीं कह सकता कि मैंने शरीर के पूरे रहस्यों को जान लिया है। मैं शुरू से ही दर्शन का विद्यार्थी रहा हूं। दर्शनों को खूब पढ़ा है। सारे भारत के दर्शनों को पढ़ा। किन्तु जब मैंने अपने दर्शन को पढ़ा मुझे बिलकुल नया आयाम मिला, नई दिशा का उद्घाटन हुआ। मैं यह मानता हूं, आज प्रत्यक्ष ज्ञान भी हो सकता है, अतीन्द्रिय ज्ञान भी हो सकता है। अपनी बहुत सारी सुप्त शक्तियों को भी हम जगा सकते हैं। हम दीन नहीं हैं, दरिद्र नहीं हैं, जो मांगते ही चलें। हम कर सकते हैं। पर संभावनाओं के द्वारों को पहले खोलने की आवश्यकता है। यह मानकर न बैठ जाएं कि आज कुछ नहीं हो सकता। अगर इतना आत्म-विश्वास जाग जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। मुझे धर्म बहुत प्रिय है किन्तु साथ में विज्ञान भी उतना ही प्रिय है। मैं धर्म को एक वैज्ञानिक दृष्टि से देखता हूं। विज्ञान की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं-प्रयोग और परीक्षण। धर्म एक विज्ञान है। धर्म सत्य है। व्यक्ति जब तक अपने शरीर के रहस्यों को नहीं जानता, वह धर्म की ग्रन्थियों को नहीं सुलझा सकता। एक डॉक्टर के लिए शरीर को समझना जितना जरूरी है एक धार्मिक के लिए भी उतना ही जरूरी है। आज एनाटॉमी, साइकोलॉजी एवं फिजियोलॉजी, जो शरीर विज्ञान की तीन शाखाएं हैं, उन्हें जब तक धार्मिक नहीं समझेगा वह सच्चा धार्मिक नहीं बन पाएगा। आज धार्मिक के सामने बड़ी चुनौती है, बड़ा प्रश्न है कि धर्म से समाज को क्या मिला ? क्या बदला ? व्यक्ति में क्या परिवर्तन आया। सचमुच ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका हम उत्तर नहीं दे सकते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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