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________________ अध्यात्म और विज्ञान अनुप्रेक्षा नहीं हुई है। उनके गुजरने का रास्ता बन्द हुआ है किन्तु उनकी उत्पत्ति का स्रोत नष्ट नहीं हुआ है। वह वैसा ही है। उसी प्रकार सजीव है, सक्रिय है। आदमी नहीं बदला, मुखौटा बदल गया। नींद में सोए आदमी को कितनी ही गालियां दें, वह गुस्सा नहीं करता। क्या हम मान लें कि उसका गुस्सा समाप्त हो गया? नींद में वह अप्रामाणिक बर्ताव नहीं करता, उत्तेजना का शिकार नहीं होता तो क्या हम यह मान लें कि ये सब वृत्तियां समाप्त हो गयी ? नींद की अवस्था में, सुषुप्ति की अवस्था में अभिव्यक्ति नहीं होती। किंतु इससे यह नहीं माना जा सकता कि व्यक्तित्व बदल गया, रूपान्तरण घटित हो गया। हम यह मानते हैं कि आत्मा है। वह पुनर्भवी है। वह कर्म की कर्ता है, वह कर्म को बांधती है। कर्म अपना फल देते हैं। कर्मों को भोगना ही पड़ता है। जब हम समग्रता की दृष्टि से इन नियमों के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो लगता है कि वैज्ञानिक उपचार केवल सामयिक उपचार है। किन्तु समस्या का स्थायी समाधान या अन्तिम समाधान नहीं है। उसका अन्तिम समाधान है कि व्यक्ति तरंगातीत अवस्था में चला जाए। अध्यात्म का सिद्धांत है-सामायिक का सिद्धांत । अध्यात्म का सिद्धांत है-अपने आपको देखने का सिद्धांत। यही तरंगातीत चेतना की भूमिका है। जब व्यक्ति तरंगातीत अवस्था में पहुंच जाता है तब न राग का तरंग रहता है, न द्वेष का तरंग रहता है। न प्रियता होती है, न अप्रियता होती है, उस स्थिति में क्रोध का तरंग जहां से उठता है उस पर ही प्रहार नहीं होता किन्तु उस तरंग को उठाने का उत्तरदायी है, उस पर प्रहार होता है। वैज्ञानिक उपकरणों का, उनके द्वारा उत्पादित औषधियों का प्रभाव मस्तिष्क स्तरों पर स्नायु-संस्थान या नाड़ी-मंडल पर होता है, किंतु इस तरंगातीत ध्यान का, इस चैतन्य की अनुभूति का और समता का प्रभाव इस शरीर पर नहीं होता, किंतु वृत्तियों की तरंगों को पैदा करने वाले पर भी होता है। यह मूल पर प्रहार करने की प्रक्रिया है, इसलिए स्थायी समाधान है। विज्ञान से आगे की प्रक्रिया है। तरंगातीत अवस्था तक पहुंचने की यही एक मात्र प्रक्रिया है। इसका अवलम्बन लिए बिना उसकी प्राप्ति असंभव है। मूल पर प्रहार अध्यात्म की चेतना को जगाना, अपने आप पर आस्था केन्द्रित करना, अपने आपको जानना, अपनी खोज करना, खोज के संदर्भ में आने वाले कष्टों के लिए स्वयं को समर्पित करना, कष्ट सहिष्णुता का विकास करना, कष्टों को आनन्द में बदल देना यह सारी प्रक्रिया ध्यान की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में केवल शारीरिक संस्थान ही प्रभावित नहीं होता, केवल शरीर की केमेस्ट्री ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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