________________
१६२
अमूर्त चिन्तन
एक प्रकार की विद्युत् तरंगें प्रसारित की। कुछ ही समय बाद उनके मन का भय भाग गया। वे चूहे बिल्ली के सामने नि:संकोच आने-जाने लगे। उनका भय समाप्त हो गया। लम्बी साधना क्यों करें ?
भय को समाप्त करने के लिए साधना की कुछ प्रक्रियाएं भी हैं। उनके द्वारा भी अभय बना जा सकता है। वैज्ञानिक प्रयोगों से भी भय को मिटाया जा सकता है। इस प्रकार साधना से जो फलित होता है वही विज्ञान के प्रयोगों के द्वारा भी फलित हो सकता है। यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है कि विज्ञान जिसको कुछ ही समय में घटित कर दिखाता है, वह साधना के द्वारा लम्बे समय के बाद घटित होता है। तो फिर व्यक्ति साधना की लम्बी उपासना में अपनी शक्ति को क्यों खर्च करे ? वह आदतों या व्यक्तित्व को बदलने के लिए विज्ञान का ही सहारा क्यों न ले ? यह प्रश्न स्वाभाविक है। तंरगतीत अवस्था : विज्ञान से परे
हमारे शरीर में तीन केन्द्र हैं। एक केन्द्र वह है जहां तरंगें पैदा होती हैं। दूसरा केन्द्र वह है जहां तरंगें गुजरती हैं। तीसरा केन्द्र वह है जहां तरंगें अभिव्यक्त होती हैं। हमारे शरीर में सारी व्यवस्था है। एक केन्द्र है जहां से क्रोध की तरंगें उठती हैं। वे स्नायुओं से गुजरती हैं और एक केन्द्र पर आकर प्रकट हो जाती हैं। एक व्यक्ति को क्रोध आता है तब यह बताने की आवश्यकता नहीं कि वह अब क्रोध के वशीभूत है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं। उसकी भृकुटि तन जाती है। होठ फड़कने लग जाते हैं। अपने आप ज्ञात हो जाता है कि गुस्सा उतर रहा है, आ गया है। यह अभिव्यक्ति ज्ञात हो जाती है। किन्तु क्रोध की तरंगों के गुजरने का पथ ज्ञात नहीं होता। उसे हर व्यक्ति जान नहीं सकता। आज का विज्ञान इन सारी बातों को जानता है। प्रत्येक वृत्ति के केन्द्र को उसने खोज लिया है। इस वृत्ति की तरंगें किस पथ से गुजरती हैं, यह भी उसे ज्ञात है। अमुक वृत्ति के केन्द्र पर प्रहार कर उसे निष्क्रिय कर देने पर वह वृत्ति समाप्त हो जाती है। कर्मशास्त्रीय भाषा में कहा जा सकता है कि उस कर्म के विपाक को बंद कर दिया। विपाक का मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण वृत्ति कभी नहीं उभरती। एक नाड़ी को काट देने पर क्रोध समाप्त हो जाता है। एक नाड़ी को काट देने पर उत्तेजनाएं समाप्त हो जाती हैं। उन वृत्तियों की अभिव्यक्ति का केन्द्र निष्क्रिय हो जाता है। जिसमें से वे तरंगे गुजरती थीं, वह रास्ता बन्द हो गया। यहां एक बात पर विशेष ध्यान देना है कि इस प्रक्रिया में तरंगों की अभिव्यक्ति समाप्त हुई किन्तु तरंगों की उत्पत्ति समाप्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org