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________________ स्वावलम्बन की अनुप्रेक्षा जरूरत भी नहीं होती है। विरोध उसका होता है जो जीवित है। आप में जीवन है और उसी ने मुझे प्रेरित किया कि आपसे मिलना चाहिए और आज मैं मिल रहा हूं।' विरोध हुआ किन्तु उस सारे विरोध के बीच में आचार्यश्री ने जो एक स्वर दिया, वह था - 'जो हमारा हो विरोध, हम उसे समझें विनोद ।' यानी विरोध को विनोद समझकर चलें । यह था शक्ति का निर्माणात्मक कार्यों में नियोजन | जो व्यक्ति अपनी शक्ति का निर्माणात्मक और रचनात्मक कार्यों में नियोजन कर सकता है, वह सचमुच विकास कर लेता है । यदि आज यह बात हमारे अध्यापकों, विद्यार्थियों और मजदूरों की समझ में आ जाए तो मैं समझता हूं कि जो रचनात्मक निष्पत्तियां हमारे सामने आनी चाहिए, किन्तु नहीं आ रही हैं, उनका एक समाधान हो सकता है । I आज देश की स्थिति क्या है ? आज के युवकों की स्थिति क्या है ? शक्ति का नियोजन करने के लिए हमें कुछेक बातों पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक होगा। पहली बात है कर्मण्यता । शक्ति तो है किन्तु कर्मण्यता नहीं है । आज हिन्दुस्तान जिस बीमारी से ग्रस्त है, वह है अकर्मण्यता और मुफ्तखोरी का पाठ उसने शताब्दियों से पढ़ लिया है । यह बीमारी उसकी रग-रग में जमी हुई है । भगवान् की दया हो, कोई काम करना न पड़े, ऐसा मानस हो गया है । लेने के लिए उसका इतना मानस बन गया है कि कोई काम करना न पड़े, श्रम करना न पड़े और काम बन जाए तो भगवान् की कृपा है, धर्म की कृपा है। श्रम करना पड़ जाए तो हम मानते हैं कि भगवान् की कृपा कम है। धर्म की कृपा कम है । पुराने जमाने की बात है। आचार्य भद्रबाहु एक बहुत बड़े आचार्य हुए हैं। संघ के सामने कोई कठिनाई आने पर उन्होंने एक मंत्र की रचना की । संघ का संकट दूर हो गया। एक स्त्री रसोई बना रही थी । उसका बछड़ा भाग गया। स्त्री ने सोचा, बछड़े को पकड़कर लाऊं । फिर सोचा, क्यों जाऊं? मुझे मंत्र याद है। उसने मंत्र का पाठ किया और देवी उपस्थित हो गयी । स्त्री ने कहा, देवी ! कोई संकट तो नहीं है। किन्तु मेरा बछड़ा भाग गया है। तुम उसे लाकर खूंटे में बांध दो।' देवी को आश्चर्य हुआ। वह भद्रबाहु के पास जाकर बोली 'महाराज ! आपने क्या कर दिया है ? यह मंत्र आपने क्यों दे दिया आज तो हमें बछड़ा बांधना पड़ रहा है, कल पता नहीं क्या-क्या करना पड़ेगा । ' १२५ यह जो अकर्मण्यता की बीमारी है, अपने कर्म पर, अपने पुरुषार्थ प विश्वास न करने की बीमारी है, हिन्दुस्तान के युवक को इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए। अगर हमारे युवक इस बीमारी से मुक्त हो जाते हैं तो समझन चाहिए कि सबसे बड़ी समस्या का समाधान हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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