________________
कर्तव्यनिष्ठा अनुप्रेक्षा
११९
स्त्रियों के पिछड़ने में उनकी अशिक्षा ही मूल-भूत कारण है। यह सच है कि शिक्षा ही सब कुछ नहीं है; किन्तु उसका भी अपना महत्त्व है। शिक्षा यह पहली भूमिका है। जब तक यह पहली भूमिका तैयार नहीं होगी तब तक अगली भूमिकाएं प्राप्त ही नहीं होंगी। महिलाओं का यह प्रथम कार्य है कि वे ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ें। वे अक्षर ज्ञान के प्रचार में अपना समय दें। वे स्वयं शिक्षित बनें और अपनी बहिनों को भी शिक्षित करने का प्रयास करें। जब ज्ञान जागता है तब हीन-भावना समाप्त हो जाती है, स्वयं की शक्ति का भान होता है और कुछ करने की बात प्राप्त होती है।
स्त्रियां यदि स्वाध्याय-मण्डल और ध्यान-मण्डल का संचालन करना प्रारम्भ करती हैं तो अशिक्षा का वातावरण कुछ अंशों में समाप्त हो जाता है।
स्त्रियों को सबसे पहले अपने आपको शक्तिशाली बनाना होगा। जो शक्तिशाली नहीं होता उसकी कोई सहायता नहीं करता। देव भी उसी की सहायता करता है जो पुरुषार्थी और पराक्रमी होता है।
स्त्रियां अपने कर्तव्यों की लौ को प्रज्वलित करें और ज्ञान बढ़ाएं। कुछ ही वर्षों में ऐसा परिवर्तन आएगा कि लोग नारी की दुर्बलताओं को भूलकर यह सोचने के लिए बाध्य होंगे की नारी की शक्ति का कैसे उपयोग किया जाए ? कर्तव्य-परायणता
कर्त्तव्य-परायणता की सबसे पहली शर्त है-निष्ठा और जागरूकता। जिस व्यक्ति की कर्तव्य-पालन में निष्ठा है, वह प्रमाद, अन्याय और मुफ्तखोरी जैसा कोई काम नहीं कर सकता। कर्त्तव्य-भावना की कमी का कारण राष्ट्रीय प्रेम की न्यूनता भी है। अपने राष्ट्र के प्रति उदात्त प्रेम होगा तो प्रमाद जैसी स्थिति को पनपने का अवकाश ही नहीं मिलेगा। परिवार और अपने चरित्र-बल के लिए भी व्यक्ति के कर्त्तव्य हैं। श्रमिक अणुव्रत के ये विधान कर्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए ही हैं। जिस श्रमिक का जीवन संस्कारी होता है, जिसमें किसी प्रकार का दुर्व्यसन नहीं होता, जो जुआ नहीं खेलता, बाल विवाह, मृत्युभोज जैसी सामाजिक कुरुतियों को प्रश्रय नहीं देता, अपने अर्जित अर्थ का सुरा, सिनेमा, सिगरेट आदि आदतों की पूर्ति के लिए अपव्यय नहीं करता, श्रम से जी नहीं चुराता और अपने दायित्व के प्रति जागरूक रहता है वह श्रमिक कभी कर्त्तव्य-च्युत नहीं हो सकता। श्रमिक जीवन एक प्रशस्त जीवन पद्धति ही नहीं, देश की बहुत बड़ी शक्ति है। श्रमिक अणुब्रत की धाराएं इस शक्ति को चारित्रिक सम्पदा से परिमंडित कर कर्तव्यपालन की अपूर्व क्षमता दे सकती हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org