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कर्तव्यनिष्ठा अनुप्रेक्षा
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देन दी है जो अध्ययन और विचार की गहराई में गये हैं। चाहे बिजली, चाहे बड़े-बड़े प्रासाद, चाहे सड़कें, चाहे बड़े-बड़े कारखाने, चाहे जीवन की सुख-सुविधा के सारे साधन और उपकरण उन्हीं लोगों ने दिये हैं जिन्होंने गहराई में जाकर सोचा है। हमारे किसान सैकड़ों वर्षों से खेती करते चले आ रहे हैं, पारिवारिक ढंग से करते चले आ रहे हैं किन्तु आज लाल अमरूद भी पैदा किए जा रहे हैं। अनेक फलों में अनेक प्रकार की सुगन्धे भी पैदा की जा रही हैं। ये सारे प्रयोग किस आधार पर हो रहे हैं ? सारे विज्ञान और ज्ञान की गहराई के आधार पर हो रहे हैं। अन्यथा जैसा चलता था वैसा ही चलता रहता। हमारे लोग झोंपड़ों में रहते थे। शताब्दियों तक झोंपड़ों में रहते ही चले गए। उन्हें उससे आगे कभी कुछ नहीं सूझा। ऐसा क्यों हुआ ? साथ में अध्ययन नहीं था। अध्ययन के बिना विकास नहीं होता। जो विकास होता है, वह अध्ययन के आधार पर ही होता है। कर्म और ज्ञान-ये दो हैं। ज्ञान गहराई है और कर्म उसकी ऊंचाई है या अभिव्यक्ति है। व्यक्त और अव्यक्त ये दो बातें हैं। भारतीय दर्शन में व्यक्त और अव्यक्त की चर्चा बहुत मिलेगी। अव्यक्त नीचे रहता है, छिपा हुआ रहता है। व्यक्त हमारे सामने आता है, प्रकट रहता है। किन्तु कोई भी व्यक्त अव्यक्त के बिना नहीं होता। जिस व्यक्त के नीचे अव्यक्त नहीं है, वह कभी व्यक्त नहीं हो सकता। व्यक्त हो सकता है ज्ञान के आधार पर, जब कर्म का योग मिलता है। हमारा कर्म इसलिए विकसित नहीं हो रहा है कि हमारे ज्ञान में गहराई नहीं है। यदि ज्ञान में गहराई हो तो कर्म विकसित होने का मौका मिलेगा। युवक को अध्ययन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और अ६. ययन भी वैसा अध्ययन जो शतशाखी बन सके।
हमें जीवन का नया मोड़ देना है। नया मोड़ देने के लिए जो पहली शर्त होगी वह है-चरित्र-निर्माण, आत्म-निर्माण। महावीर को आज के इतिहासकारों ने नीति का प्रथम प्रतिष्ठापक बतलाया है। जिन्होंने नीति का प्रतिपादन किया उनमें सबसे पहला नाम भगवान् महावीर का आता है। महावीर ने धर्म के साथ नीति का प्रतिपादन किया। महावीर ने कभी नहीं कहा कि मेरी पूजा करो। महावीर ने कभी नहीं कहा कि मेरा नाम जपो। उन्होंने कभी नहीं कहा कि मेरे नाम पर बैठे रहो और भगवान् के भरोसे (राम भरोसे) बैठे रहो। महावीर पुरुषार्थवादी थे। वे पराक्रम में विश्वास करते थे। उन्होंने यही कहा कि तुम सच्चे बनो। उन्होंने नीति-धर्म का प्रतिपादन किया, चरित्र धर्म का प्रतिपादन किया। युवकों के लिए सबसे पहली बात जो करणीय है, वह है आत्म-निर्माण की दिशा में गति और प्रयत्न ।
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