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अनुभव का उत्पल
CIRCH
आत्मा और परमात्मा
"यः परमात्मा स एवाहं"- जो परमात्मा है, वह मैं हूं और जो मैं हूं, वही परमात्मा है। हमारा विश्वास हैआत्मा ही परमात्मा है।
आत्मा और परमात्मा के बीच भय, घृणा, आसक्ति और विकार- ये दीवारें हैं। इसका निर्माण आवरण की ईंटों से होता है। हर मनुष्य ही नहीं, हर जीवित वस्तु आत्मा है। उस पर शरीर का आवरण है। जो आवरण को ही देखता है, वह भय, घृणा, आसक्ति और विकार से भर जाता है।
हम अभय बनना चाहें, स्वस्थ और निर्विकार बनना चाहें तो आत्म-दर्शन का अभ्यास बढ़ाएं। जिससे हमें घृणा है, डर है, आसक्ति है और विकार है, उसमें आत्मा विराजमान है। उस आत्मा में हमारा इष्ट देव परमात्मा विराजमान है।
परमात्मा का भक्त क्या परमात्मा से डरेगा? क्या वह परमात्मा से घृणा करेगा? क्या वह उसे आसक्ति और विकार का हेतु बनाएगा?
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