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- अनुभव का उत्पल
अनुभव का उत्पल
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सहज क्या है?
जो मन को भाता है, वही सुख है, या कुछ और? जो सहज लगता है, वही सुख है या कुछ और।
इन्द्रियों की सहज गति विषय की ओर है। मन भी निरन्तर पदार्थों की ओर दौड़ता है। आराम करने में सुख है, काम करने में नहीं।
असत्य बोलने में जो रस है, वह सच बोलने में नही।
अहिंसा की साधना करनी पड़ती है, हिंसा सहज है। ईंट का जवाब पत्थर से देने में जो पौरुष की कल्पना है, वह सह लेने में नहीं है।
इन्द्रिय और मन वासना से सहसा भर जाते हैं और उससे मुक्ति प्रयत्न करते-करते भी नहीं मिलती।
अपरिग्रह की बात सुनते-सुनते कान बहरे हो गए पर हृदय ने उसे कभी नहीं पकड़ा। परिग्रह के लिए हजार कष्ट झेलने की तैयारी रहती है।
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