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आचार्य भिक्षुकृत सुदर्शन चरित का काव्य सौन्दर्य
विनियोजन से भाषा अधिक रोचक हो गई है। कथोत्प्ररोह, मंडनशिल्प, पूर्वदीप्ति प्रणाली आदि शिल्पगत विशेषताओं से सम्मिलित होकर प्रस्तुत काव्य की भाषा रमणीय एवं आह्लादक हो गई है। सूक्ति-सौन्दर्य
काव्य में सूक्तियों के विन्यास से सशक्तता एवं प्रभावोत्पादकता का संवर्द्धन होता है। सुदर्शन चरित्र में अनेक सुन्दर-सूक्ति का शोभन सन्निवेश किया गया है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं१. विद्या अरुवरनार संपद देह शरीर सुख ।
मांग्या मिले नहीं च्यार पूर्व सकृत कीधां विना ।।२।१ विद्या, श्रेष्ठ नारी, संपत्ति एवं शरीर सुख पूर्व सुकृत के बिना मांगने से नहीं मिलती हैं : २. पुन्नजोगे जोडी मिली २०१८ पुण्य के योग से सुन्दर जोड़ी की प्राप्ति होती है। संस्कृत की उक्ति
प्रसिद्ध है-दुर्लभा सदृशी भार्या । ३. सर्व कागद स्याही खपे कलम सर्व खप जाए । त्रियाचरित्र तो छेधणा न लिख्या कोई न लिखाय ।।३९.६ सभी कागद स्याही, कलम समाप्त हो जाए फिर भी त्रिया (कुशीला)
का चरित्र नहीं लिखा जा सकता। ४. कुसती में अवगुण घणा सतीशील' गुणखान ।।३९.८
कुलटा अवगुण का घर है सतीशील गुण की खान है । ५. अरिहंत सिद्ध साधु धर्म रो, लेवे शरणां च्यार। तिण भोग जाण्यां विष सरिखा तिणरी वंछा न करे लिगार ।। इन्द्रादिक सुर नर बड़ा नारी तणा हुवे दास । ज्यांमे पुरुषांकार पराक्रम हुवे ते उलटा करे अरदास ॥५।१४ बड़े-बड़े इन्द्रादि देव मनुष्य भी नारी के दास हो गए हैं। जिनमें तनिक
भी पुरुष भाव होता है वे स्त्री के गुलाम बन जाते हैं । ६. हिवे नारी जात छे तेहनों कदे न करूं विश्वास ॥ढाल ५ दुहा ६
नारी जाति पर विश्वास नहीं करना चाहिए। ७. पर पुरुष हो बाइ जाणो भाई समान ॥१०।१३
पर पुरुष को भाई समान मानना चाहिए। ८. शील विनां हो बाइ घणा नर नार ते गया जमारो हार ।
शीलथकी हो बाइ घणा नर नार ते गया जन्म सुधार ॥१०.२०,२१
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