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________________ राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा और आ० तुलसीकृत चरित काव्य ५५ आचार्य श्री तुलसी के कवि हृदय की प्रौढ़ता को परिलक्षित करता है। इन चारों कृतियों में कोई भी ऐसा पद नहीं है जो अलंकृत नहीं हो । यदि किसी पद में अर्थालंकार का प्रयोग नहीं हो सका तो वहां पर शब्दालंकार की रमणीयता अवश्य उपलब्ध हो जायेगी। शब्दालंकार में अनुप्रास तथा यमक का प्रयोग विशेष रूप से मिलता है । अनुपास में लाटानुप्रास, छेकानुप्रास और वृत्यानुप्रास कवि को विशेष प्रिय रहे हैं । अर्थालंकारों में कवि ने रूपक, उपमा उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त आदि का विशेष प्रयोग किया है । कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं --- अनुप्रास जांगल जीव भेड़िया भालू, सांभर, शशक सियार (मगन चरित्र, पृ० ७) रूपक क्षमा खड़ग कर धर सुभग, धर्म-ढाल दृढ़ ढाल । शास्त्र शस्त्र, जिन व च कवच, प्रत्याक्रमण कराल ।। (कालूयशोविलास, पृ० १३२) उपमा बांध्योड़ी मर्यादा भारी भिक्षुराजजी, गूंथ फूलमाला-सी बणाई हाजरी। (डालिम चरित्र, पृ० ३४) मालोपमा बिलकुल खाली पात्र स्यूं रे, क्यंकर खलक्यो नीर । झोली पात्र जुदा-जुदा रे, दिखलाया धर धीर । पकड़यो वन्ध्या-पुत्र नै रे, चोरी में चौगान । घस्यो सींग खरगोश रो रे, औषधि हित अनुपान ॥ (डालिम चरित्र, पृ० ४२) यमक अतनु अष्ट अघ नष्ट करि, तदनु अतनुता प्राप्त । अतनु नमत स्पष्टा गुण, प्रतनु कर्म हो जात ॥ (माणक महिमा, पृ० २६) उत्प्रेक्षा पीयूषवर्षिणी दृष्टि हुई, मानो मन चाही वृष्टि हुई । संतोष पोष की सृष्टि हुई, विश्वास वृद्धि उत्कृष्टि हुई । (मगन चरित्र, पृ० ३३) श्लेष सोलह वरसां री वय पाई, की सौ वरसां री भर पाई। तिण में तो भोलावत गोतो,, के करतो स्याणावत होतो ॥ (मगन चरित्र, पृ० ५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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