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राजस्थानी शब्द-सम्पदा को तेरापंथ का योगदान
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चौ निजरयां हो जावै ।
बोक्को फाडबो। जाली हुंडी चलाबो ।
भै रै भूत सूं मरता। जिंदगी रैण बसेरी बणगी।
मन रो कोड पुरायो। भाग बिलोता रैबो।
मूंछालां मरदां रो। तांतो तोड़बो।
रुवाली नहीं हाली। तांतो जोड़बो।
रोटी नहीं सिकना। तागो टूट गो।
विवेक रो दीपक बुझ ग्यो । तुरग ताजणो खावै ।
सत्य सानड़ो पड़सी। दाल में कालो।
सोलह आना सच । देख्यो तेल तिलारो।
(.."पर) स्याही फेरना । नय्या पार लंघावै ।
(म्हारी) हाम पूरबो । न शीष-खसोलण है न गवाड़ी। हिम्मत हारना ।
मुहावरों के समान ही कहावतें भी भाषा में रोचकता उत्पन्न करती हैं, और उसे स्मरणीय बनाती हैं । तेरापंथी साहित्य में प्रयुक्त कहावतों के कुछ प्रतिदर्श (नमूने) यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं । कहावतें
आखिर तो फूटयां सरै पाप रो फोड़ो। गगन बगीचो फूलै । घर रा पूत कंवारा डोल, पाडोस्यां रा परणावै । चाहो जितो घिरत गुड़ सींचौ, नीम न कटुता त्यागे । जो करै सो भरै। पंगु पदचारी बणै । पाणी छकण स्यूं छणसी। बांझ संतान जण । बिना आंच ही दूध उफणसी। बेला बाह्या मोती निपज के कहुं बारी-बारी। मावड़ भार मरी क्यूं ?
इन गृहीत शब्दों में यथोचित, यथापेक्ष अर्थ-परिवर्तन भी किया गया है, जिससे राजस्थानी कृत इन शब्दों को अर्थ-गौरव प्राप्त हुआ है, और भाषा की श्रीवृद्धि हुई है। ऐसे अगणित शब्दों में से दो-चार यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
'गण' को 'धर्मसंघ' अर्थ में, 'गणी' को 'आचार्य' अर्थ में, 'गुण ठाणो' को 'आत्म-विश्वास की भूमिका अर्थ में, 'गाथा' को 'धर्मसंघ की कल्पित मुद्रा' अर्थ में, 'चरमोच्छव' (चरमोत्सव) को 'तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री
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