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________________ राजस्थानी शब्द-सम्पदा को तेरापंथ का योगदान बेहरावणो-भिक्षा देना मूलोत्तर दूषण। ब्रह्मचर्य-आत्मरमण, वस्ति-संयम । यावत्कथिक देह-व्युत्सर्जन । भगती -आतिथ्य; अतिथि साधु- राग साध्वी को आहार-पानी लाकर राम । देना । लांछना भव-जन्म लोलुपता। भव-बाधा वंचना भव-भीरु विकथा भवाम्बुधि विनिवर्तना भविजीव विभुता भात-पाण-आहार-पानी विभूति भावोपक्रम-अभिप्राय जानने का विमल विवेक उपाय। विरक्ति भाषा-समिति-दोष-रहित भाषा का विराग प्रयोग। विवशता भेद-दृष्टि विषय-वर्जन भैक्षव शासन वीतरागता भोगायतन--शरीर। वीर दर्शन मंगलीक-शास्त्रों के कुछ मंगल- वृत्ति सूक्त । वेदनीय कर्म मंडी-शव-यात्रा का विमान । मता-सम्पदा । व्रतधारी। मन-गमती-मनोनुकूल शिक्षाद्वय ममकार शिरलंचन महापंथ शुक्ल धर्म महायान मार्दव श्रामण्य मास-खमण --एक मास का उपवास । श्रावक मिथ्यात्वी संकलक मुखपति-जैन मुनियों का एक उप- संक्लेश करण जो मुख पर बांधा जाता संगम समता संघीय सुरक्षा मुनिवर संचित कर्माश्रित व्युत्सर्ग शोणित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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