SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानी शब्द-सम्पदा को तेरापंथ का योगदान सबकी राजस्थानी शब्दावलि मिलकर तो अतिविशाल राशि हो जाती है । ये शब्द संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय भाषाओं एवं उर्दू, अंग्रेजी आदि से लिये गये हैं। जैसे कविचन्द का पृथ्वीराज रासो, षड्भाषा-समन्वित होने से सम्पूर्ण देश में समादृत हुआ, वैसे ही तेरापंथी काव्य, विशेषतः सन्त जयाचार्य और आचार्य तुलसी का काव्य सर्वजन-समादरणीय बन गया है। संस्कृत तो राजस्थानी आदि सभी भारतीय भाषाओं का मूलाधार है। अतः संस्कृत के शब्द तो राजस्थानी में प्रचुर संख्या में हैं ही । संत जयाचार्य के समान ही आचार्य तुलसी ने भी अपने राजस्थानी काव्य में संस्कृत-शब्दावलि का प्रयोग सर्वत्र और बाहुल्यपूर्वक किया है। इससे उनकी रचनाएं सारे देश में सुबोध्य हो गयी हैं, और तेरापंथी राजस्थानी काव्य को राष्ट्र-व्यापकता प्राप्त हो गयी है। तेरापंथी काव्य में बहु प्रयुक्त संस्कृत-शब्दावलि बहुत विशाल है। अतः संस्कृत शब्दों को पृथक्श: बताना निरर्थक प्रयास प्रतीत होता है। फिर भी तेरापंथी साहित्य में प्रयुक्त ऐसे कुछ संस्कृत शब्द यहां दिये जा रहे हैं, जिनका प्रयोग सामान्यतः हिन्दी या राजस्थानी में कम ही होता है। ऐसे शब्दों के प्रयोग से यह ज्ञात होता है कि तेरापंथी साहित्यकार राजस्थानी भाषा को समृद्ध करने में कितने तत्पर हैं । विशेष संस्कृत-शब्दअंगज (पुत्र) अभ्यस्त अदेही अम्भोज-कमल अधम अरण्य अधरीकृत —निराकृत अव्यय अनन्य-असाधारण आकस्मिक अनवद्य-दोषरहित आकार अनीति आक्रोश अनुताप-ताप-सन्ताप आखण्डल-इन्द्र अन्तराल आतपत्र अपलक आतुरता अप्रतिघात आधिव्याधि अप्रतिबद्ध आध्यात्मिक अप्रतिम आराम-वाटिका अप्रतिहत आशा का आसार अभिमान आशी-विष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy