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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
तथा जयाचार्य द्वारा लिखित “भिक्षु दृष्टांत" न केवल तेरापंथ का ही अपितु राजस्थानी साहित्य का भी एक अमोल रत्न है। थोड़े में बहुत कह देना, शिष्ट-मिष्ट व्यंग्य, शब्दों का सटीक चुनाव आदि भिक्षु दृष्टांत की अनेक अनुपम विशेषताएं हैं।
- इसी तरह हेम दृष्टांतों तथा श्रावकां रा दृष्टांतों का संग्रह भी अमूल्य कृतियां हैं। सिखामण
शिष्य प्रबोध की दृष्टि से सिखामण की एक सीधी चोट करने वाली विधा का भी संघ में विकास हुआ है। अतः अपने उत्तराधिकारियों को सीख देने की दृष्टि से जयाचार्य की गणपति सिखामण कृति भी महत्वपूर्ण है । प्रकीर्ण-पत्र
इन सबके अतिरिक्त प्रकीर्ण-पत्रों के अनेक संग्रह भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । पुराने जमाने में न तो कागज इतना सुलभ था और न लिखने की प्रवृत्ति भी बहुत विकसित थी, पर फिर भी संघ के अनेक सदस्यों ने समयसमय पर अपनी कुछ अनुभूतियों कुछ स्मृतियों, कुछ आदेश-निर्देश छोटे-छोटे कागजों पर लिख लिए थे। कुछ पत्र तो ऐसे भी हैं जो दो-दो चार-चार अंगुल के हैं, पर उन पर जो संदेश अंकित हैं वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । कभीकभी तो ये चीप चिमटिये इतने महत्वपूर्ण बन जाते हैं कि पूरी घारणा में ही परिवर्तन कर देते हैं। ऐसे अनेक पत्र नष्ट भी हो गए। पर बचे हुए पत्रों को आचार्य तुलसी ने संग्रहीत कर उनका नाम प्रकीर्ण-पत्र दे दिया। सचमुच साहित्य परम्परा तथा इतिहास की दृष्टि से उनका बहुत बड़ा मूल्य है ।
इस तरह तेरापंथी के राजस्थानी गद्य-साहित्य पर एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए मैं अपने निबन्ध पर विराम लगाता हूं, पर यह भी सही है कि अनुसंधान पर कभी भी पूर्ण विराम नहीं लगाया जा सकता। अनुसंधान का अर्थ ही है आगे-से-आगे जुड़ते चले जाना । आशा है मैं जो नहीं कह पाया हूं आने वाले लोग उसे और जोड़ने का प्रयत्न करेंगे।
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