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________________ २०२ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान का स्तम्भ' कहे जाने की पृष्ठभूमि में अपने समय और जीवन की सुस्पष्ट, सुबोध, व्यापक एवं जीवन्त चित्रांकन शक्ति ही क्रियाशील है। रसपरिपाक जितना प्रबन्ध-काव्यों में सम्भव है, उतना अन्य किसी काव्य रूप में नहीं । प्रबन्ध का अर्थ है-बन्ध सहित अर्थात् जिस काव्य में शृंखलाबद्ध रूप में वस्तु-वर्णन हो । प्रबन्ध में कथा की अपेक्षा रहती है, और विविध कथाओं की शृंखला-बद्धता का रूप उसमें आद्यांत देखा जा सकता है। यह 'शृंखला-बद्धता' पूर्वापर सापेक्ष होती है। रचनाकार की दृष्टि और चिंतन प्रबन्ध की विशेषता रहती है । जीवन के चित्रण के स्वरूप को लेकर समीक्षकों ने प्रबन्ध काव्य को दो भागों में विभक्त किया है--प्रथम-महाकाव्य, द्वितीयखंड काव्य । महाकाव्य वह महत काव्य रूप है जिसमें व्यापक कथानक, विराट चरित्र कल्पना, गम्भीर अभिव्यंजना शैली, विशिष्ट शिल्प विधि और मानवतावादी जीवन दृष्टि से उसका रचयिता युग जीवन के उन्नत बोध को सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर प्रतिफलित करता है। श्रेष्ठ महाकाव्य की रचना मानवता के मंगलमय आख्यान और लोक मानस की चेतना के आकलन का सांस्कृतिक प्रयास होती है।' खण्ड काव्य जीवन खंड का अपने में पूर्ण चित्र होता है। इसमें जीवन के किसी एक मार्मिक पहलू की अनुभूतिमय व्यंजना होती है । जीवन के खण्ड का बोध मात्र कवि के हृदय में नहीं होता, प्रत्युत उसका समन्वित प्रभाव उसके हृदय पर पड़ता है। तब प्रेरणा के बल पर जो रूप खड़ा होता है वह खंड काव्य कहलाता है। महाकाव्य में जहाँ सर्गबद्धता, लोक प्रख्यात कथानक, उदात्त पात्र, सृष्टि और भाषा का आभिजात्य अनिवार्य है वहीं खंड काव्य में लोक प्रख्यात की शर्त अनिवार्यता के साथ नहीं जुड़ी है । सर्गबद्धता भी उसके लिए मानक नहीं है । जीवन के समस्त उत्कर्ष-विकर्ष का वर्णन भी उसके लिए जरूरी नहीं। अपने छोटे से कलेवर में उद्देश्य की गरिमा का निर्वहन व चित्रण उसमें रोचकता के साथ होता है। अगले पृष्ठों में इसी पृष्ठभूमि में तेरापन्थ के राजस्थानी प्रबन्ध-काव्यों को परखने और कुछ निष्कर्ष निकालने का विनम्र प्रयत्न करूँगा। राजस्थानी प्रबन्ध-काव्य परम्परा-- विश्व की अन्यान्य भाषाओं की भांति राजस्थानी भाषा में प्रबन्ध काव्यों की आवरल परम्परा प्रबहमान रही है । राजस्थानी के प्रबन्ध काव्यों की महत्ता का भास इसी तथ्य से लग जाता है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास के आदिकाल का महत्वांकन और विश्लेषण जिन प्रबन्ध कृतियों से किया जाता है वे राजस्थानी भाषा की ही हैं। उनमें मानव जीवन के अनेक पहलुओं को छूने और उसे विविध दृष्टि-बिन्दुओं से आंकने का प्रयास हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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