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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री द्वारा पात्रों का चारित्रिक संयोजन इतने सपाट ढंग से होता है कि सहज रूप से संबंधित व्यक्ति के जीवन और चरित्र की पूरी जानकारी मिल जाती है । चाहे उस पात्र को आपने अपने जीवन में देखा हो या नहीं, लेकिन उसका चित्रण वास्तविक होता है । इस संबंध में साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी के शब्दों को दोहराना समीचीन होगा । जिन्होंने 'माणक महिमा' के सम्पादकीय में लिखा है - " कवयिता ने जीवन चरित्र के नायक से कभी साक्षात्कार नहीं किया पर कृति-दर्शन से ऐसा प्रतीत नहीं होता । अनदेखी स्थिति का इतना सजीव विश्लेषण कवि की गहरी संवेदनशीलता की द्योतना है ।'
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माणक मुनि के वैराग्य और गुरु चरणानुराग को आचार्यश्री ने अत्यन्त संक्षिप्त ढंग से प्रस्तुत किया है
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"जय जश मध्वा पद अनुरागी, भागी माणक मन वैरागी । आन्तर हृदय भावना जागी भागी माणक मन वैरागी ॥
२.
मुनि श्रेष्ठ के रूप में माणक मुनि को स्वीकारते हुए लिखा गया है
" सकल शुभंकर, मघवा पटधर महामुनि । मुनिन्द मोरा माणक सुमित सुमेर हो ।'
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माणक मुनि अपने उत्तराधिकारी आचार्य का चयन किये बिना स्वर्गारोहण कर गये तो आचार्यश्री उन्हें उलाहना देने में भी चूके नहीं है-"थारै तो होती असकेल, म्हांरै महाभारत रो खेल । खांधां बहणो आसान, लाखों की मुट्ठी में जान । क्यूँ कर जासी सिन्धु तर्यो । २७ इतना ही नहीं इसके आगे वे साफ शब्दों में लिखते है-"ओ ऋण बिना चुकायां, स्वर्ग सिधाया साफ सुणावाला ।' डालिम गणि का चरित्र गान संघ के आचार्य के रूप में आचार्यश्री ने ston चरित्र में किया है । चरित्र को एक ही सांचे में ढालकर प्रस्तुत करने का प्रयास यहाँ भी नहीं किया गया है । चरित्र को सहज रूप से गति देने और विस्तार पाने का अवसर आचार्यश्री ने प्रस्तुत किया है । घटना तत्त्व की प्रधानता लिये यह काव्य रहा है, और घटनाओं के आधार पर ही चरित्र निर्माण हुआ है । कहीं-कहीं संकेत रूप में चारित्रिक विशिष्टताओं को एक ही साथ उद्धृत कर दिया गया है । डालिम गणि की कुशाग्र बुद्धि एवं स्मरण शक्ति का परिचय देते हुए लिखा गया है—
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"दशवैकालिक आवस्सग, उत्तराध्ययन प्रशस्त । वेद कल्प नन्दी किया, पांच सूत्र कंठस्थ |
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मनुष्य को परखने की विशिष्टता डालिम गणि में विद्यमान रही । आचार्य श्री ने इस ओर ध्यान दिलाते लिखा है
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