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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
मूल में वजित विषय को सरसता और सरलता के साथ प्रस्तुति देना । जयाचार्य ने उस अर्थ को सार्थकता प्रदान की है।
वृत्तिकार ने भगवती की तुलना जयकुञ्जर से की है। अनुवादक ने टीका के उस अंश को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुति देते हुए कोमलकान्त पदावलि का प्रयोग किया है
जयकुञ्जर गण जिम जयवंतो समय भगवती सख र सोहंतो पंचम अंग भगवती पवर, द्वितीय नाम आख्यो तसु अबरं सरस विवाह पण्णविनाएं जय कुञ्जर गज जिम जयकारे ललित मनोहर जे पद केरी पद्धति रचना पंक्ति सुहेरी पंडित जनमन रंजन प्यारो प्राज्ञ रिझावण हार प्रचारो॥
जयाचार्य ने अपने अनुवाद में कई स्थानों पर वृत्तिकार के मत की आलोचना करते हुए स्वतन्त्र टिप्पणियां भी प्रस्तुत की हैं। और उसकी पुष्टि में आगम-प्रमाणों की ऐसी शृंखला खड़ी कर दी है मानो सारे आगम उनके सामने रखे हैं। उदाहरण के रूप में-वृत्तिकार ने मुनि में तीन अप्रशस्त लेश्याओं का निषेध किया है। जयाचार्य ने मुनि में छः लेश्या स्वीकारते हुए ११७ पद्यों में उसकी समीक्षा हेतु अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं (द्रष्टव्य है भगवती जोड़ ढाल ५१, गाथा २४ से १४०)।
जयाचार्य ने अपनी रचनाओं में प्राकृत, संस्कृत व अन्य देशी भाषाओं के शब्दों का राजस्थानीकरण कर राजस्थानी भाषा के विस्तार में बहुत बड़ा योगदान दिया है । शब्दों को मृदु बनाने की उनमें विशिष्ट कला थी। उदाहरण के रूप में अर्धमागधी के स्थान पर अधमागधी, नजदीक के स्थान पर नजीक, बुद्धिमान के स्थान पर बुद्धिवन्त ।
प्रस्तुत रचना पद्यात्मक और तुकांत है। गीतिका की लय और तुक का निर्वाह करने के लिए जयाचार्य ने शब्दों की यथोचित कांट-छांट भी की है तथा उनका अपभ्रंशीकरण भी किया है- 'पुलाक नियठाणी स्थित ।'
जयाचार्य की प्रत्येक रचना में विनम्रता और श्रद्धा झांकती है। जिनवाणी पर उनका समर्पण भगवती जोड़ में स्थान-स्थान पर देखा जा सकता है। वे अनेक स्थानों पर कहते मिलेंगे- 'मैंने अपनी बुद्धि से यह अर्थ किया है कि निश्चय में ज्ञानी पुरुष जाने"---एक पाठ आता है.---'व्हाएकयबलिकम्मे' वत्तिकार ने बलिकर्म का अर्थ जिन प्रतिमा किया है । जयाचार्य उक्त अर्थ से सहमत नहीं थे। उन्होंने उस पर एक लम्बी समीक्षा करते हुए एवं अनेक आगम-प्रमाणों को उद्धत करते हुए उसके दो अर्थ निश्चित किए हैं--या तो वह स्थान का विशेषण होना चाहिए या बलि कर्म अर्थात् गृह देवता होना चाहिए। जिन प्रतिमा अर्थ उन्हें नहीं जंचा। अनेक आगम
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