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उपदेश रत्न कथाकोश : एक विवेचन
0 डॉ० किरण नाहटा
तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जीतमल जी या जयाचार्य राजस्थानी के महान् साहित्यकार हो चुके हैं। आपकी विलक्षण प्रतिभा का परिचय इसी बात से मिलता है कि आपने अपने जीवन काल में राजस्थानी भाषा में लगभग साढ़े तीन लाख पद-प्रमाण साहित्य की रचना की । आपका यह विपुल साहित्य गद्य और पद्य दोनों रूपों में मिलता है। आप द्वारा सृजित, संकलित एवं अनूदित विविध रचनाओं में एक उल्लेखनीय रचना है-उपदेश रत्न कथा कोश । जैसा कि इस रचना के नाम से हो स्पष्ट है, इस विशाल कथाकोश में मूलतः उपदेश प्रधान कथाओं का संकलन हुआ है। यों कथाओं के अतिरिक्त इसमें अनेक उपदेश एवं नीति परक पद्यों का संकलन भी हुआ है । इस प्रकार के उभय पक्षीय संकलन कोश के पीछे संकलनकर्ता का उद्देश्य स्पष्ट रहा है । संकलन कर्ता जयाचार्य मुख्यतः नित्य व्याख्यान देने वाले साधुसाध्वियों के लिए सरस, मनोरंजक एवं उपदेशप्रद सामग्री का बहु उपयोगी कोश प्रस्तुत करना चाहते थे।
उपदेश रत्न कथा कोश में कुल ५६७ कथाएं संग्रहीत हैं। इतनी बड़ी संख्या में संगृहीत ये रचनाएं स्वभावतः ही विविध रूपा हैं। कथा, आख्यायिका दृष्टांत, संस्मरण, प्रहेलिका, ऐतिहासिक प्रवाद, पौराणिक आख्यान आदि सबका समावेश इनमें हो गया है।
यद्यपि राजस्थानी भाषा में कथाकोशों की परम्परा नहीं रही है और यह अपने ढंग का अकेला ही कथाकोश है; किन्तु जैन साहित्य में कथा कोशों की सुदृढ़ परम्परा रही है । वस्तुतः यह कथाकोश भी उसी शृंखला की एक कड़ी है । जैन साहित्य में संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश आदि विविध भाषाओं के कथाकोश उपलब्ध हैं। इन कथाकोशों में जिनेश्वरसूरिकृत कथाकोश प्रकरण, राजशेखरसूरिकृत प्रबन्धकोश, हरिषेणकृत वृहत्कोश, नेमिचन्द्रकृत कथामणि कोश, तथा देवभद्रसूरिकृत कथा रत्न कोश आदि प्रमुख हैं।
जयाचार्य के इस कथाकोश की अनेक विशेषताएं हैं जिन पर व्यापक रूप से और विविध दृष्टियों से विचार किया जा सकता है । यहाँ तो संक्षेप में उसकी कतिपय प्रमुख विशेषताओं को ही रेखांकित किया जा रहा है ।
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