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________________ १४० तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान कुलक्षणा स्त्री की चेष्टाओं को वे घुमाकर कहते हैं डेली चढ़ती डिग-डिग करे, चढ जाय डूंगर असमान । घर मांहे बैठी डर करे, रात जाए मसाण ॥ देख बिलाइ ओजके, सिंध ने सनमुख जाय । सांप ओसीसे दे सुवे, ऊंदर सूं भिड़काय ।। --सुदर्शनचरित, ढाल ६/५,६ अनुप्रास की छटा भी उनके काव्य में दर्शनीय है खिण रोवे खिण में हंसे, खिण मुख पाड़े बूंब । खिण राचे विरचे खिणे, खिण दाता खिण सूम ।। -सुदर्शनचरित, ढाल ६/८ भिक्षु के उपमा अलंकार के प्रयोग भी बड़े हृदयहारी हैं। प्रचलित उपमाओं के अतिरिक्त सैकड़ों स्वोपज्ञ उपमाओं का प्रयोग उन्हें महान कवयिता के रूप में प्रतिष्ठित कर देता है । नारी के नयनों को बाणों से उपमित करने वाले सैकड़ों कवि हैं। पर उसके वचन और अंग को उपमित करने वाले एक मात्र कवि हैं आचार्य भिक्षु । वे कहते हैं नेण बाण नारी तणा, वचनज तीखा सेल । अंग तीखो तलवार सो, इण मार्या सकल सकेल ।। -सुदर्शनचरित, ढाल ६/१४ अविनीतपुत्र जब अपने वृद्ध पिता के सन्दर्भ में कहता है-'म्हारे बारणे रिणाइ ज्यू बैठो” तो सांसारिक संबंधों की स्वार्थपरता की धुन साधारण श्रोता को भी उद्वेलित कर देती है। अविनीत व्यक्ति की प्रकृति को चित्रित करते हुये वे लिखते हैं अविनीत ने अविनीत श्रावक मिले, ते पामे घणो मन हरख । ज्यू डाकण राजी हुवै चढ़वाने मिलिया जरख । -विनीत-अविनीत री चौपाई, ढाल ५।२८ प्रकृति चित्रण को काव्य का एक आवश्यक पहलू माना गया है। आचार्य भिक्षु की प्रतिभा इस विषय में बेजोड़ थी। चंपानगरी के धात्रीवाहन राजा के उद्यान की सुषमा का वर्णन करते हुये रानी अभया कहती है--- फूल्यो रहे सखी ! चंपो मरवो अथाय, ___ फूल्या छै जाई-जुही नै केतकी । फूल्या हे सखी ! पाडल फूलड़ा ताय, फूल्या छे रूंख धवलाने सेतकी ।। -सुदर्शनचरित, ढाल ७/२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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