SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० ढाल ११ १२ १४ १६ १७ १८ १९ २० २५ २६ २७ रचना स्थान रीयां पीपाड़ २८ २९ ३० अगंदपुर खेरवा खेरवा तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान रचनाकाल १८३३ १८३४ १८३३ १८३२ १८३२ १८३२ १८३३ १८३३ १८५२ १८५३ १८५२ १८५३ १८५५ १८५६ आषाढ़ सुदी ३ सोमवार आषाढ़ सुदी ६ बुधवार वैशाख सुदी ११ रविवार आसोज सुदी २ मंगलवार कार्तिक बदी २ मंगलवार गुंदवच रीयां यां पाली सोजत पाली सोजत पाली नाथद्वारा २०. निह्नव से चौपाई उन्हीं के भगवान महावीर युग में शिष्य अपने एकांत आग्रह से संघ विच्छेद कर लेते हैं । किसी एक मान्यता में निजी स्वतंत्र मान्यता प्रस्तुत कर अपना अलग संगठन बना लेते हैं, जिन्हें निह्नव कहा गया । जैसे -- जमाली गोष्ठामाहिल आदि । Jain Education International वैशाख सुदी ११ सोमवार ज्येष्ठ सुदी १५ शुक्रवार आषाढ़ बदी ९ रविवार भाद्रव बदी ७ शुक्रवार आसोज सुदी ७ शनिवार आसोज सुदी २ बुधवार आसोज बदी ११ मंगलवार भाद्रव बदी १० बुधवार कार्तिक सुदी ८ मंगलवार परिस्थिति विशेष में जनित अवस्था से वे प्राप्त अवधारणा को छोड़ नई अवधारणा से जुड़ गए - जैसे जीव का अन्तिम प्रदेश ही जीव है । एक समय में दो क्रियाएं हो सकती हैं, आदि-आदि । इस कृति में आचार्य भिक्षु ने निह्नवों की मान्यताओं की गम्भीर आलोचना की है । इस संग्रह में कुल ६ ढालें तथा २८ दोहे हैं । गाथाओं की संख्या १७२ है | रचनाकाल और स्थान का उल्लेख प्राप्त नहीं है । २१. विनीत- अविनीत की ढाल आचार्य भिक्षु एक विशिष्ट साधक थे, लेखक थे और थे मनोवैज्ञानिक स्कॉलर | प्रस्तुत कृति में अविनयी के चरित्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रभावोत्पादक रूप में गुम्फित है । साथ ही अविनयी पुनः विनय में प्रतिष्ठित होकर आत्मोदय की ओर किस प्रकार प्रस्थान करता है, इसका भी सुन्दर विवेचन है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy