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________________ आचार्य भिक्ष की साहित्य साधना १२९ 12MAMALAMMA गंगातुर खेरवा mr ढाल रचना स्थान रचना काल सिरियारी १८५० आषाढ़ सुदी २ रविवार गुदवच १८५१ वैशाख सुदी ११ बुधवार खेरवा १८५३ आश्विन बदी १५ बुधवार मेड़ता १८५४ वैशाख बदी १५ सोमवार पाली १८५५ केलवा १८५५ फाल्गुन बदी १ बुधवार गुरला १८५८ कार्तिक बदी ५ मंगलवार पीपाड़ा १८३३ ज्येष्ठ बदी १२ मंगलवार १८५४ वैशाख बदी १० मंगलवार सिरियारी १८५१ कार्तिक बदी १४ बुधवार पुर १८५७ आश्विन बदी ९ शुक्रवार १८५७ आश्विन बदी १३ मंगलवार १८५७ पौष सुदी ८ मंगलवार पीपाड़ा १८५७ चैत्र सुदी १३ सोमवार १८५४ आश्विनी सुदी १ बृहस्पतिवार खेरखा १८५४ आश्विन सुदी १५ बृहस्पतिवार पूहना १८५७ माघ बदी २ शनिवार रावल्यां १८५७ चैत्र सुदी १४ रविवार मेवाड़ १८५७ आश्विन बदी १५ बृहस्हतिवार २९ नेणवा १८४८ माघ बदी १५ सोमवार १८. आचार की चौपाई आचार्य भिक्षु की धर्मक्रांति का मौलिक आधार था-आचारशैथिल्य । तत्कालीन साधुओं का सुविधावादी दृष्टिकोण तथा आगम सम्मत शुद्ध आचार के प्रति औदासीन्य देखकर स्वामीजी ने इस कृति का निर्माण किया। जब कभी जहां जो कुछ घटित होता है आपकी लेखनी उसे कागज पर उतार देती, यह आपकी साहित्यिक चेतना की प्रतीक थी। प्रस्तुत कृति में शुद्ध साधु की पहचान के कुछ बिन्दु प्रस्तुत किए हैं। साध्वाचार और श्रावकाचार की मौलिकता जनता के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। __ यह कृति ३२ ढालों का संग्रह है। प्राप्त सामग्री के अनुसार कुछ ढालों का रचनाकाल और स्थान निम्न प्रकार हैढाल रचना स्थान रचनाकाल ९ मेड़ता १८३३ वैशाख बदी ८ m २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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