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भिक्खु दृष्टांत--एक अनुशीलन
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पढ़कर जनता ने अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त किया। पुनः दूसरे संस्करण की मांग होने लगी। चिर प्रतीक्षा के बाद जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के पुनीत अवसर पर दूसरी बार इस कृति का पुनरावलोकन किया गया आचार्यप्रवर के सान्निध्य में। इस महत्वपूर्ण कृति के प्रवाचक-युग प्रधान आचार्यप्रवर हैं। प्रधान सम्पादक-महामनीषी युवाचार्य प्रवर हैं। सम्पादक हैं मुनित्रय-- मुनिश्री मधुकरजी, मुनिश्री मोहनलालजी आमेट, मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी तथा प्रबंध सम्पादक श्रीचंदजी रामपुरिया, कुलपति--जैन विश्व भारती लाडनूं ।
यह जय वाङ्मय का २४ वां ग्रन्थ है। इसमें तीन परिशिष्ट भी
१. हेम संस्मरण ३७ हैं। २. श्रावक संस्मरण २५ हैं। ३. फुटकर संस्मरण दृष्टांत इसमें स्फुट ३२ संस्मरण हैं।
राजस्थानी भाषा साहित्य को जयाचार्य का अनुपम अवदान है'भिक्खु दृष्टांत'।
कुशल प्रशासक जयाचार्य ने स्वामीजी के जीवन के केनवास पर उभरे हुए हर घटना प्रसंगों को बड़ी कुशलता के साथ शब्दों में उकेर कर 'भिक्खु दृष्टांत' के रूप में प्रस्तुत किया है। यह भिक्खु-दृष्टांत उनकी सफलसृजनशीलता, साहित्यक प्रतिभा और कुशल कलात्मकता का परिचायक है। वर्तमान में पारदर्शी व्यक्तित्व के महाधनी युग प्रधान आचार्यप्रवर भिक्षु चेतना वर्ष में जन-जन में भिक्खु-दृष्टांत के माध्यम से नई चेतना स्फुरित करना चाहते हैं।
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