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भिक्खु दृष्टांत-एक अनुशीलन (दृष्टांतों की छटा)
साध्वी कानकुमारी
साहित्य के क्षितिज पर उभरने वाली अनेक विधाओं में एक सरस और सुबोध विधा है-संस्मरण । संस्मरण सांस्कृतिक परम्परा के संवाहक हैं । संस्मरणों में सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक वातावरण का प्रवाह होता है।
जिस समय जो संस्मरण घटित होते हैं, उन्हें कालजयी मनीषा, गहरी संवेदनशीलता और तथ्यों के साथ नई प्रस्तुति प्रदान करती हैं। कलम द्वारा लिखे गए ये संस्मरण इतने सजीव और जीवंतता लिये होते हैं, कि उन्हें पढ़ने वालों की फिसलती निगाहें एक बार में ही सहजता से पकड़ लेती हैं।
___ संस्मरणों की जो विधा है, वह आत्म-चरित्र के अन्तर्गत आती है। संस्मरणों को प्रस्तुत करने वाला लेखक अपने समय का सम्पूर्ण इतिहास अंकित करना चाहता है।
संस्मरणों में लेखक की संवेदनाएं और अनुभूतियाँ मुखर होती है। इसलिए लेखक शैली की दृष्टि से निबंधकार के बहुत निकट होता है । पश्चिम के साहित्य में साहित्यकारों के साथ-साथ बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों, प्रबुद्ध व्यक्तियों और उच्च पदाधिकारियों ने अपने जीवन में घटित होने वाले संस्मरणों को अक्षर-शिल्पी बनकर जीवन के कागज पर चित्रित करने का सफल प्रयास किया हैं। उन संस्मरणों के महत्व को साहित्यिक-जगत ने स्वीकार किया है।
___ संस्मरण लेखक यदि अपने सम्बन्ध में लिखते हैं, तो उससे उनकी रचना आत्मकला की निकटता साधती है। यदि अन्य व्यक्तियों से संबंधित संस्मरण लिखे जाते हैं, तो वे संस्मरण जीवनी के निकट होते हैं। इन दोनों प्रकार के संस्मरणों को अंग्रेजी में क्रमश: “रेमिनिसेसेंज और मेम्बायर्स" कहते हैं । इस दृष्टि से स्मृति के आधार पर किसी विषय या व्यक्ति के सम्बन्ध में लिखित लेख या ग्रन्थ को संस्मरणात्मक संज्ञा प्राप्त होती है। संस्मरणों के स्वस्तिक विविध भाषाओं में उकेरित हुए हैं।
हिन्दी साहित्य में इस विधा का प्रचलन आधुनिक काल में पश्चिमी प्रभाव और वातावरण में हुआ है। संस्मरण-लेखन-क्षेत्र में प्रौढ़ एवं सृजनात्मक रचनाएं अच्छी संख्या में उपलब्ध हैं। हिन्दी के प्रारम्भिक लेखकों में
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