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________________ आधुनिक राजस्थानी कविता को तेरापंथी सन्तों का योगदान ८९ आधुनिक मनोविज्ञान की मान्यता है कि आज का मानव इतने बाहरी और भीतरी तनावों एवं दवाबों के बीच जी रहा है कि वह अपने व्यक्तित्व को खण्डित होने से नहीं बचा पा रहा । एक ही व्यक्ति में न जाने कितने व्यक्तित्व अन्तर्निहित रहते हैं और एक ही चेहरा न जाने कितने मुखौटे लगाकर सामने आता है उणियारे में एक ऊपर आज की सभ्यता का यह संकट है कि व्यक्ति अपनी सम्पूर्णता और समग्रता को खण्डित होने से नहीं बचा सका है । उणियारो की कविताओं में व्यक्तित्व - विघटन और उसके अन्तर्बाह्य जीवन की अनेक रूपता और परस्पर विरोधिता का स्वर ही सबसे ऊपर उभर कर सामने आया है । यह आज का युग-सत्य है कि जो बाहर से जुड़े हुए हैं वे ही भीतर से टूटे हुए लगते हैं । और जो बाहर से भरे-भरे लगते हैं वे ही भीतर से खाली दिखलाई पड़ते हैं । व्यक्ति जैसा है वैसा दिखलाई नहीं पड़ता है, और जैसा दिखलाई पड़ता है, वैसा है नहीं । जीवन का यह दुविधाजनक द्वन्द्व उनकी अनेक कविताओं में मुखरित हुआ है— और घणा उणियारा है, अभितर न्यारा-न्यारा है ! बारै हंसणो, भीतर रोणो, ये दोन्यूं चालै । झूठ अणूता घोचा नितरा घरं घालै । बारै स्यूं सांचो, भीतर स्यूं झूठो बण जावै । कीं नैं मानां, कीं नैं छोड़ा, ओ संसो आवै । कवि ने व्यक्ति के इस बहुरुपिएयन - अन्तर्बाह्य जीवन की असमानता पर प्रबल प्रहार करते हुए समग्रता, एकरूपता और अविभाज्यता के महत्त्व को रेखाङ्कित करने का प्रयास किया है। जीवन में विरोध ही विरोध है, परन्तु विरोध का भी अपना एक आकर्षण होता है Jain Education International रोण - हंसण में दूरी सौ कोस री पण दोन्यां नै बिना मिल्यां कद आवड़े ! आपने भी हँसते हुए आँसू और रोती हुई मुस्कान देखी होगी ! कभी बच्चन ने गाया था 'जो बीत गई सो बात गई ।' व्यक्ति अगर स्मृतियों के भार को लादे फिरेगा तो उसके पैर कभी सीधे नहीं पड़ेंगे । आँसुओं के सागर में डुबकी लगाने वाले को कभी किनारा नहीं मिलता । अतीत केवल स्मृति है तो भविष्य निरी कल्पना, व्यक्ति को जीना तो वर्तमान में ही पड़ता है— बीती बातां भूल, आज नै काम लै, जीवतड़े पल री डोरी तूं थाम लै, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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