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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान कंपनी या स्वार्थवादपणे पोंजी पूर्व अपना सर जिनकदेव नागी यमाजी तदेव जी गए दिकक रिभूमिका की एसेो वमी व क रिजीतनो धवले जनधरर अनीवार मजीऊिपनाजी एह जीवना जाए. राजाप समज्जी निमदिजक दिवेोपि बिजक रिपूजीयो की मागणी वृती कया काविशेषगी तिम पीए जीजी सर्वजीवनी मोठ घरती दासी पुत्रपजी ऊपन अवलोय पेम श्रदिश शेषक दीजीये या करेथ विदेनुगवतजी गोलाल वानर माहि मोटरोजे हवाम नृतककादिमादि श्राविव पोजी पोषितपणे करमादिकनाला कि दिवाकर मोटो ममुक तमुक म नाजी नानाजी ऊपनी पूर्व सोमपुरुषपएँऊ पनीजी - एजबरकदेह शीलसमाधिर ही तरतरीत ललना मर्यादा रातएनटी पार्थियन नगद जी पूर्व सोपूर्वक पनोजी पलसर वाससादीत कालकरी काल अवसरे स्त्रपाटी एडू उत्कृष्ट सागर-प्राउये ऊपजेनरकम नागोमाजी जातीवार सर्वजीव पिल एदनाजी एम अतीवार सेवन गौतम कह क श्रम गनमहावीरजी नागरैइ विश्वाश गो ऊपजवालामा कपनाक दिये। || विमार बार देश कसानमौजी दीयसोपैसमी शिकारी मान कृषिरायथलो समय सोयरे वानर मीम को समय जोयरे नारक नवक दिथेनथ जयजदर दिन वा अर्थ दो जीवनी एकारण अबलोयरे किमक दिये नारक पणे निरणयवतजोरे वीरो पत्र-अधिकार अष्टसुदेश विएतिमन संगांतरे विचार सिए कालनेतिए समय यावत गोतमस्या वालागी न्हालरे क दियेते दने ऊपना किया निष्टा कासरे एबिधी कपजवाला गोजे मन्या तेजी विजयकरी सरनामामी पुरनगरमा महाकर गवंत या कार्य समयते तिसपनों ने हर निष्टाकालज समाइक क्रियानिष्टानारे एवेन जादाजी तर तिची करीबी नेताम जी गोमदामएम के इक तेमाटे जिनदारे ३२३मा कपनों नेत्राचा इतिश्म्म इटह गऊपजे नागकता गजराजजी थानागते सादि एवं समाज नागा- वो सर जोइ जे पर वेदनों असत तेरा तनवैनदी एवी आशंका करे तेनी शंकाटानवाने ग्रंथ प्रथमतली द्वितीयमनुष्पद शिवपदमा दिसिद्धावस्पे बेशरीरी नागजेद: तेनागविषेसुरऊप यकदेंगे - असन बने जेए समये गोलांगुला दिक तेसमये नारकी नथी। इस कारणे नार की पवि जिनका उपजत दो गो तेतिदाना गजन्मदिधे तथा उस त्रिषेत त ग्रमेदिनादिक करी व दिवातिदा निर्णयक है। श्रम सगवंत श्रीमहावीर स्वामी श्मक देवानरादिक नारकी स्ततिविशेषपुष्पादिकक रिपूजीयो नागलणीजनमेष वस्त्रादिक सहकारीयो वलिममानयी ऊपजतानतो ते भर के ऊपनाज कहिये किया काल अनिष्टाका लए बिना यने दधी कप ज एमए सेना नागराणीभर ने मिशन साची तिको स्वप्नादिक क रिसोय ते कोवे गाते अपना क दीजेएसस जे वानरमुख तव गमी नरक नानवनों दिलो समय कुपवा | सपने अवतीय सफल सेव वै जेनी देवष्टितसार पूर्व मशदिकसुर निकट की कर्मी वाटेने एक्रिया काल -अनैतेज समय रूप नए निष्टशकाल एक्रिया का सनिष्टशकाल नो समय दारी एदवानाविधे भ्रमरजे ऊपजै भगवान जिन स्दनागोथमा श्रमरऊपजे नगोय क्रियाकाल नों जे समय ते दिन समय निष्टा का नोबेल न्याय बिकास नच लेदर की ऊपजवान ॥ अनर दिन विदांध की नीकलतेदसी जिनक है तासी झेतिको जान करैः खत गोयतेने अपनोंक दियेपुर सीवा विदेश जिमद सर्पिणी उस सप्तमात काम कि सुरनमवत जी मजएट दोय शरीरीलिविषेश्य उपजे म निश्वेक रिया पारावार शेष एशी तरी तपूर्व ली परे जाव राष्टथी जाए ऊपजतागात ऊपनाक दियेपि यो नागझरी जिमन्दालगो कहिनौतिया दिजरीत स्त्रमलिनों विशाल गोसुर मर्दिकाथ विदे नगवंतजी टेक केक लोक मुक मोरीयो सर हित सोय. शेषतिम वही बेशरीरी तरुमै उपजत प्र जिनक है दना उपने एवं चैव देवनाएं जाष्टिवल सेवतेसु विशेष प्रयागौतम विवरतानाममुद्देश दोय सोनगसमी जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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